नई दिल्ली: कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार द्वारा हाल ही में लागू की गई माइग्रेशन नीतियों के कारण हजारों अंतरराष्ट्रीय छात्र, विशेष रूप से भारतीय छात्र, संकट में आ गए हैं। नई नीतियों के तहत, कनाडा में पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए वर्क परमिट और स्थायी निवास के लिए आवेदन करना पहले से अधिक कठिन हो गया है। इस फैसले का सीधा प्रभाव 35,000 से अधिक भारतीय छात्रों पर पड़ने वाला है, जिन्हें अब डिपोर्टेशन का सामना करना पड़ सकता है।
नए नीतिगत बदलाव और उनकी असर
जस्टिन ट्रूडो सरकार ने स्टडी परमिट और परमानेंट रेजिडेंसी (PR) नॉमिनेशन की संख्या को सीमित कर दिया है, जिससे कनाडा में अध्ययन कर रहे छात्रों के भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। स्टडी परमिट की समाप्ति के बाद इन छात्रों को अब वर्क परमिट के लिए आवेदन करने का मौका नहीं मिलेगा। इसके अलावा, स्थायी निवास के लिए प्रांत स्तर पर नॉमिनेशन की संख्या में भी 25% की कटौती की गई है। इस फैसले के परिणामस्वरूप, कनाडा में अध्ययनरत 70,000 से अधिक छात्रों पर निर्वासन का खतरा मंडरा रहा है, जिनमें से आधे से अधिक भारतीय हैं।
कनाडा के प्रवासी मंत्री मार्क मिलर ने 21 जून के बाद से पोस्ट-ग्रेजुएशन वर्क परमिट (PGWP) के लिए आवेदन पर रोक लगाने की घोषणा की है। यह कदम उन छात्रों के लिए एक बड़ा झटका है जो कनाडा में अध्ययन करने के साथ-साथ काम करने की उम्मीद लगाए हुए थे। PGWP की समाप्ति के बाद, छात्रों को अपने देश लौटने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचेगा।
छात्रों के विरोध प्रदर्शन और व्यापक असंतोष
सरकार की इन नीतियों के खिलाफ कनाडा के विभिन्न प्रांतों में छात्रों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। ओंटारियो, मैनिटोबा, ब्रिटिश कोलंबिया, और प्रिंस एडवर्ड आइलैंड (PEI) जैसे प्रांतों में छात्रों ने सड़कों पर उतरकर कैंप लगाए हैं और रैलियों का आयोजन किया है। छात्र इन नीतियों को न केवल अपने सपनों पर आघात मान रहे हैं, बल्कि वे इसे उनके जीवन और भविष्य को अनिश्चित बनाने वाला भी मानते हैं।
कनाडा में अध्ययन कर रहे भारतीय छात्र विशेष रूप से चिंतित हैं, क्योंकि इनमें से कई छात्र भारी एजुकेशन लोन लेकर कनाडा पहुंचे हैं। स्थायी निवास और वर्क परमिट की संभावनाओं के बंद होने के बाद, इन छात्रों के पास लौटकर अपने देश में भारी कर्ज चुकाने का दबाव बढ़ गया है। इसके अलावा, विदेशी कामगारों की संख्या में कमी करने के सरकार के फैसले ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
ऑस्ट्रेलिया में भी विदेशी छात्रों पर नई पाबंदियाँ
कनाडा के बाद, ऑस्ट्रेलिया ने भी विदेशी छात्रों की संख्या को सीमित करने का निर्णय लिया है। ऑस्ट्रेलिया सरकार ने घोषणा की है कि वह 2025 तक अंतरराष्ट्रीय छात्र नामांकन को 270,000 तक सीमित रखेगा। यह निर्णय देश में रिकॉर्ड माइग्रेशन के कारण बढ़ते प्रॉपर्टी किराए की समस्या को देखते हुए लिया गया है। पिछले वर्ष, ऑस्ट्रेलिया में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या 548,800 तक पहुंच गई थी, जो एक रिकॉर्ड संख्या है।