नई दिल्ली: कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल सोमवार को लोकसभा में बहुप्रतीक्षित ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (One Nation One Election) विधेयक पेश करेंगे। यह विधेयक देश में एक साथ चुनाव कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, सरकार ने इस विधेयक पर विस्तार से चर्चा और आम सहमति बनाने के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजने की योजना बनाई है।
संयुक्त संसदीय समिति की भूमिका
जेपीसी सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ विस्तार से चर्चा करेगी और इस विधेयक पर सामूहिक सहमति बनाने की दिशा में प्रयास करेगी। सरकार का मानना है कि एक देश, एक चुनाव के माध्यम से बार-बार चुनाव कराए जाने से होने वाले आर्थिक खर्च और व्यवधान को कम किया जा सकता है।
विपक्ष और समर्थन की स्थिति
जहां केंद्र सरकार इस विधेयक को एक महत्वपूर्ण सुधार मानती है, वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसी कई विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया है। उनका तर्क है कि इस विधेयक से सत्तारूढ़ पार्टी को राजनीतिक लाभ मिलेगा। इसके विपरीत, नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) और चिराग पासवान जैसे प्रमुख एनडीए सहयोगियों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।
उच्च स्तरीय समिति और पूर्व राष्ट्रपति की भूमिका
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी उच्च स्तरीय समिति ने इस विधेयक को लेकर कई चर्चाएं कीं। समिति ने 32 राजनीतिक पार्टियों का समर्थन प्राप्त किया, जबकि 15 पार्टियों ने विरोध दर्ज कराया। कोविंद ने अक्टूबर में आयोजित 7वें लाल बहादुर शास्त्री स्मृति व्याख्यान में बताया कि विरोध करने वाली पार्टियों में से कई ने पूर्व में इस विचार का समर्थन किया था।
रिपोर्ट की तैयारी में छह महीने का समय
रामनाथ कोविंद ने बताया कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ रिपोर्ट तैयार करने में छह महीने का समय लगा। इस रिपोर्ट को 21 वॉल्यूम्स में तैयार किया गया है, जो 18,000 से अधिक पृष्ठों की है। इसके लिए 16 भाषाओं में 100 से अधिक विज्ञापन दिए गए, जिनके माध्यम से 21,000 लोगों से प्रतिक्रिया प्राप्त हुई। 80 प्रतिशत लोगों ने एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में अपनी राय दी।
आर्थिक बचत और विकास की संभावनाएं
रामनाथ कोविंद के अनुसार, भारत में चुनाव कराने में वर्तमान में 5 से साढ़े 5 लाख करोड़ रुपये खर्च होते हैं। यदि यह विधेयक लागू हो जाता है, तो एक साथ चुनाव कराने में केवल 50 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। इससे बचने वाली राशि को औद्योगिक विकास और अन्य जनहित के कार्यों में लगाया जा सकेगा। अनुमान है कि इस सुधार के लागू होने के बाद देश की जीडीपी में 1 से 1.5 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।