बीकानेर: होली का त्यौहार रंगों और उल्लास का त्यौहार है, लेकिन बीकानेर में चोवटिया जोशी जाति के लिए यह त्यौहार थोड़ा अलग होता है। होलाष्टक लगने के साथ ही इनके घरों में 8 दिन तक खाना नहीं बनता। यह परंपरा बीकानेर के साथ-साथ पाकिस्तान के सिंध प्रांत में भी निभाई जाती है।
परंपरा का इतिहास
यह परंपरा कैसे शुरू हुई, इसका कोई निश्चित इतिहास नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि यह 350 साल पहले शुरू हुई थी, जब बीकानेर के महाराजा ने होली के दौरान 8 दिनों तक शाकाहारी भोजन करने का व्रत रखा था। उस समय, चोवटिया जोशी जाति महाराजा के लिए भोजन तैयार करती थी, इसलिए उन्होंने भी व्रत रखने का फैसला किया।
परंपरा का पालन
होलाष्टक लगने के साथ ही चोवटिया जोशी जाति के लोग घरों में खाना बनाना बंद कर देते हैं। इस दौरान वे बाहर से खाना मंगवाते हैं या रिश्तेदारों और दोस्तों से खाना लाते हैं। घर में कोई भी नई चीज नहीं खरीदी जाती है, और कपड़ों पर इस्त्री भी नहीं की जाती है।
पाकिस्तान में भी परंपरा का पालन
यह परंपरा केवल बीकानेर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत में रहने वाले चोवटिया जोशी जाति के लोग भी इसे निभाते हैं। विभाजन के बाद भी, सिंध में रहने वाले लोगों ने इस परंपरा को जीवित रखा है।
परंपरा का महत्व
यह परंपरा त्याग और आत्म-संयम का प्रतीक है। यह लोगों को भौतिक सुखों से दूर रहकर आध्यात्मिकता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करती है।