बीती रात अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच खोस्त प्रांत के जाजी मैदान जिले में स्थित डूरंड रेखा पर भारी गोलीबारी हुई। अफगान समाचार एजेंसी खामा प्रेस के अनुसार, बुधवार शाम करीब 7 बजे यह झड़प शुरू हुई और देर रात तक जारी रही। इस गोलीबारी में दोनों पक्षों द्वारा भारी हथियारों का उपयोग किया गया। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, अफगानी सैनिक सीमा क्षेत्र में नई सुरक्षा चौकियों का निर्माण कर रहे थे, जिसके कारण इस संघर्ष की शुरुआत हुई।
सीमा विवाद की पुरानी जड़ें
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच डूरंड रेखा का विवाद काफी पुराना है। यह रेखा दोनों देशों के बीच एक काल्पनिक सीमा के रूप में मानी जाती है, लेकिन अफगानिस्तान की अब तक की किसी भी सरकार ने इसे वैध सीमा के रूप में मान्यता नहीं दी है। सीमा विवाद लंबे समय से जारी है, और समय-समय पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें होती रहती हैं।
2021 में तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी के बाद पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तालिबान के साथ उसके बेहतर संबंधों के चलते यह विवाद समाप्त हो जाएगा, लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत रही। तालिबान सरकार ने सीमा विवाद को लेकर पहले की अफगान सरकारों के रुख को न केवल बनाए रखा, बल्कि सीमावर्ती इलाकों पर अपना दावा और मजबूत कर लिया।
गोलीबारी के कारण और परिणाम
खामा प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अफगान सैनिक बीते तीन दिनों से डूरंड रेखा के समीप सुरक्षा चौकियों का निर्माण कर रहे थे, जिससे पाकिस्तान की ओर से विरोध हुआ। महाज न्यूज ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि देर रात तक गोलीबारी थम गई थी। हालांकि, स्थानीय निवासियों के अनुसार, गोलीबारी में कई लोग मारे गए हैं, लेकिन फिलहाल मृतकों की सही संख्या की पुष्टि नहीं हो पाई है।
तालिबानी सरकार और सीमा विवाद
तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद सीमा विवाद और बढ़ गया है। तालिबान ने न केवल डूरंड रेखा को मान्यता देने से इनकार किया है, बल्कि पाकिस्तान द्वारा सीमा पर बाड़ लगाने का भी विरोध किया है। इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच कई बार विवाद हो चुका है। तालिबान का कहना है कि अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों पर उसका दावा है और वह इन्हें अपने नियंत्रण में रखना चाहता है।
सीमा पर तनाव: क्या है डूरंड रेखा?
डूरंड रेखा, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा है, जो अफगानिस्तान और पाकिस्तान को विभाजित करती है। यह सीमा 1893 में ब्रिटिश भारत और अफगान अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच एक समझौते के तहत बनाई गई थी, लेकिन इसे अफगानिस्तान ने कभी भी स्थायी सीमा के रूप में स्वीकार नहीं किया।