नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण (Delhi Poor AQI) के गंभीर हालात पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कदम उठाते हुए केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों पर गंभीर टिप्पणियां की हैं। प्रदूषण से संबंधित सुनवाई के दौरान, सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने पर्यावरण संरक्षण कानून को बेकार कर दिया है।
सुनवाई की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अभय ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा कि केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं और कानून की धारा 15 में बदलाव कर दंड को जुर्माने में बदलकर अपनी जिम्मेदारियों से बचने का प्रयास किया है।
केंद्र सरकार पर कड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत सजा का प्रावधान है, लेकिन केंद्र सरकार केवल नोटिस भेजने तक ही सीमित है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एश्वर्य भाटी ने अदालत को बताया कि अगले 10 दिनों में धारा 15 को प्रभावी बनाया जाएगा। लेकिन जस्टिस ओका ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सरकारें अगर सच में कानून का पालन कराना चाहतीं, तो कम से कम एक मामले में सजा का प्रावधान होता।
हरियाणा और पंजाब की सरकारों पर भी नाराजगी
अदालत ने हरियाणा और पंजाब सरकार को पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई न करने के लिए भी खरी-खरी सुनाई। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि राज्य सरकारें प्रदूषण नियंत्रण में गंभीर होतीं, तो वे कार्रवाई करतीं। जस्टिस ओका ने कहा, “राजनीतिक कारणों की वजह से शायद किसानों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।”
प्रदूषण नियंत्रण में गंभीरता की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त रुख ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि सरकारें वास्तव में प्रदूषण को नियंत्रित करने की इच्छुक हैं, तो उन्हें प्रभावी कार्रवाई करनी होगी और प्रदूषण के कारणों की जड़ तक पहुंचना होगा।