नई दिल्ली: देशभर में आज विजयादशमी का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। इस शुभ अवसर पर दार्जिलिंग स्थित सुकना कैंट में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सेना के जवानों के साथ विजयादशमी का त्योहार मनाया और शस्त्र पूजा की परंपरा निभाई। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
रक्षा मंत्री ने किया शस्त्र पूजा का महत्व स्पष्ट
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शस्त्र पूजा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां शास्त्रों और शस्त्रों दोनों की पूजा की जाती है। लोहे और लकड़ी से बनी वस्तुओं की पूजा को सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं समझना चाहिए, यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है जिसमें किसी भी वस्तु का उपयोग करने से पहले और बाद में उसका सम्मान किया जाता है।” रक्षा मंत्री के इस वक्तव्य ने भारतीय परंपराओं में शस्त्र पूजा की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया।
विजयादशमी मानवता की जीत का प्रतीक
राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में विजयादशमी को मानवता की जीत का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा, “भगवान राम ने रावण का वध इसलिए किया था क्योंकि वह मानवता के लिए आवश्यक था। रावण एक विद्वान होने के बावजूद बुराई का प्रतीक बन गया था, और भगवान राम की उसके प्रति कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी। विजयादशमी हमें यह सिखाती है कि बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अच्छाई की हमेशा जीत होती है।”
भारत के हितों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार
रक्षा मंत्री ने देश की सुरक्षा और रक्षा नीति के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए कहा, “भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, लेकिन अगर हमारे हितों या मानव मूल्यों पर आंच आई, तो हम किसी भी बड़े कदम से पीछे नहीं हटेंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, पड़ोसियों की हरकतों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता, इसलिए भारत को हर स्थिति के लिए तैयार रहना होगा।
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सेना के साथ विजयादशमी मनाने का उद्देश्य
रक्षा मंत्री ने सुकना कैंट में सेना के जवानों के साथ विजयादशमी मनाते हुए कहा कि सेना देश की सबसे बड़ी ताकत है और उनके साथ यह पर्व मनाना सम्मान की बात है। जवानों के साहस और त्याग की सराहना करते हुए उन्होंने कहा, “देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आप सभी की निस्वार्थ सेवा काबिल-ए-तारीफ है और विजयादशमी का पर्व आपकी ही वीरता का प्रतीक है।”
शस्त्र पूजा की परंपरा: रामायण और महाभारत काल से चली आ रही है
शस्त्र पूजा की परंपरा रामायण और महाभारत के काल से चली आ रही है, जिसमें अस्त्र-शस्त्रों की पूजा कर उन्हें शक्ति का प्रतीक माना जाता है। आज भी भारतीय सेना और सुरक्षा बल इस परंपरा का पालन करते हैं। यह पूजा न केवल शस्त्रों के प्रति आस्था और सम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह यह भी दिखाती है कि युद्ध केवल अंतिम उपाय के रूप में ही किया जाना चाहिए, जब देश के हितों की रक्षा करना अत्यावश्यक हो।