नई दिल्ली: संसद का शीतकालीन सत्र लगातार हंगामे की भेंट चढ़ रहा है। शुक्रवार को भी लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही बाधित रही। राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होते ही सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। सभापति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष पर तीखा हमला करते हुए कहा कि विपक्षी दल नियम 267 का उपयोग सामान्य कामकाज बाधित करने और व्यवधान पैदा करने के लिए कर रहे हैं।
नियम 267 बना विवाद का केंद्र
नियम 267 राज्यसभा की कार्यवाही का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। इस नियम के तहत, किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्तावित मुद्दे को प्राथमिकता दी जाती है और पूर्व-निर्धारित एजेंडे को निलंबित कर दिया जाता है। हालांकि, सभापति ने शुक्रवार को 17 नोटिस खारिज कर दिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि सदन में नियम 267 का दुरुपयोग हो रहा है।
धनखड़ ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, “ये दिन हमें जनहित के लिए समर्पित करने चाहिए थे, लेकिन सदन के तीन कार्यदिवस बर्बाद हो गए। प्रश्नकाल का न होना देश के लोगों के लिए बड़ा झटका है।”
संसद में विधायी कामकाज ठप
सोमवार से शुरू हुए इस सत्र में अब तक कोई विधायी कामकाज नहीं हो सका है। शून्यकाल और प्रश्नकाल जैसे महत्वपूर्ण सत्र बाधित रहे। विपक्ष ने अदानी समूह के खिलाफ भ्रष्टाचार, मणिपुर और संभल में हिंसा जैसे मुद्दों पर चर्चा की मांग करते हुए नोटिस दिए, जिन्हें सभापति ने खारिज कर दिया।
सभापति की नाराजगी और देश के प्रति चिंता
सभापति ने नियम 267 को व्यवधान का हथियार बताए जाने पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने सदन में कहा, “हम जन-आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे हैं। हमारा कामकाज जनता की निंदा का पात्र बन रहा है।”
उन्होंने सांसदों से गहन चिंतन की अपील करते हुए कहा कि इस तरह के व्यवहार से संसद की गरिमा और उसकी कार्यक्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।
नियम 267: एक परिचय
राज्यसभा नियम पुस्तिका के अनुसार, नियम 267 के तहत किसी भी सदस्य को यह अधिकार है कि वह सभापति की सहमति से पूर्व निर्धारित एजेंडे को निलंबित करने का प्रस्ताव कर सकता है। इस नियम का उद्देश्य राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा सुनिश्चित करना है।
पिछले 36 वर्षों में, नियम 267 के तहत केवल छह बार चर्चा की अनुमति दी गई है, जिससे इसका उपयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में होता है।