अयोध्या, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने शानदार जीत हासिल की है। इस जीत के साथ ही बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 में अयोध्या में समाजवादी पार्टी (सपा) से मिली हार का बदला भी ले लिया है। बीजेपी ने सपा के सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को हराकर चंद्रभानु पासवान को मिल्कीपुर का नया विधायक चुना। इस जीत का श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के संगठन को दिया जा रहा है, जिनकी रणनीतियों ने मिल्कीपुर की सीट पर भगवा लहर को मजबूत किया।
योगी आदित्यनाथ की रणनीति: एक जीत की गारंटी
बीजेपी की इस जीत को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रणनीति और उनके नेतृत्व की अहमियत के तौर पर देखा जा रहा है। मिल्कीपुर सीट वह इलाका है, जिसे योगी ने अपनी और पार्टी की प्रतिष्ठा से जोड़ा था। चुनाव प्रचार के दौरान योगी ने इसे न केवल एक चुनावी सीट बल्कि अपने हिंदुत्व के प्रयोगशाला के तौर पर प्रस्तुत किया। इसके परिणामस्वरूप बीजेपी ने शानदार तरीके से जीत हासिल की। योगी आदित्यनाथ की निष्ठा और रणनीतिक दृष्टिकोण ने मिल्कीपुर को बीजेपी के हाथों में फिक्स किया और पार्टी की झोली में बंपर जीत डाल दी।
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भगवा और भदरसा कांड: बीजेपी के प्रमुख मुद्दे
बीजेपी की जीत के पीछे दो प्रमुख मुद्दे रहे, जिनमें भगवा और भदरसा कांड शामिल थे। भगवा हिंदुत्व के प्रतीक के तौर पर प्रचारित किया गया, और यह सपा के खिलाफ एक इमोशनल मुद्दा बन गया था। मिल्कीपुर के चुनाव में बीजेपी ने इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से उठाया, खासकर लोकसभा चुनाव में फैजाबाद (अयोध्या) सीट पर मिली हार के बाद। योगी आदित्यनाथ ने इसे चुनौती के रूप में लिया और मिल्कीपुर को हिंदुत्व का प्रतीक बनाते हुए प्रचारित किया।
भदरसा कांड, जिसमें अवधेश प्रसाद के करीबी मोईद खान का नाम सामने आया था, ने सपा के मुस्लिम तुष्टिकरण की आलोचना की। यह कांड गैंगरेप से जुड़ा हुआ था, जिसके आरोपी मोईद खान और उनके ड्राइवर को जेल भेज दिया गया। इस मामले को बीजेपी ने सपा के मुस्लिम तुष्टिकरण पर हमला करने के तौर पर प्रस्तुत किया और इसका खूब प्रचार किया।
सपा की आधी-अधूरी लड़ाई
सपा इस चुनाव में पूरी तरह से उत्साहित नहीं दिखी। पार्टी ने चुनाव प्रचार के लिए अपने सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को उम्मीदवार बनाया, लेकिन बीजेपी ने इस सीट पर चंद्रभानु पासवान को उतारकर सपा के यादव वोट बैंक में सेंधमारी कर दी। इसका असर यह हुआ कि यादव वोटरों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के पक्ष में खड़ा हो गया। इस वजह से सपा का चुनावी उत्साह कमजोर पड़ा और पार्टी आधे-अधूरे मन से चुनाव लड़ती नजर आई।
बीजेपी की रणनीति ने दिखाया असर
बीजेपी ने चुनाव में एक नई रणनीति अपनाई, जिसमें परिवारवाद से तंग आए मतदाताओं को नए चेहरे के रूप में एक विकल्प पेश किया गया। सपा के भीतर बढ़ते विरोध और टिकट वितरण में असंतोष का लाभ बीजेपी ने उठाया और चंद्रभानु पासवान को उम्मीदवार बना दिया। इसके साथ ही सपा के अंदर का नाराज तबका चुपचाप बीजेपी के साथ जुड़ गया।
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संगठन का अहम योगदान
बीजेपी के संगठन ने इस जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संगठन ने घर-घर जाकर प्रचार किया और बूथ प्रबंधन पर खास ध्यान दिया। धर्मपाल सिंह, संगठन महामंत्री, ने चुनाव से पहले यह सुनिश्चित किया कि हर वोट को सही जगह पर डाला जाए और कोई भी वोट छूटने न पाए। कार्यकर्ताओं को चुनाव में पूरी तरह से सक्रिय रखा गया और चुनावी रणनीति को सही दिशा में लागू किया गया।
चंद्रभानु पासवान का विनम्र स्वभाव और कार्यकर्ताओं की ऊर्जा
चंद्रभानु पासवान के विनम्र स्वभाव ने भी उन्हें एक लोकप्रिय उम्मीदवार बना दिया। उन्होंने अपनी बात रखने के लिए सभी कार्यकर्ताओं के साथ घुलमिलकर काम किया और हमेशा उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। उनका यह सरल और प्रभावी व्यवहार कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करता रहा, जिससे उनकी जीत की संभावना मजबूत हुई।
भूपेंद्र चौधरी की अहम जीत
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के लिए यह जीत खास महत्वपूर्ण रही। उनके कार्यकाल के खत्म होने से पहले यह जीत उनके नेतृत्व की सफलता को साबित करती है। भूपेंद्र चौधरी ने इसे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की नकारात्मक राजनीति पर बीजेपी की जीत करार दिया। इस जीत ने बीजेपी को एक नया उत्साह और ताकत दी है, जो आगामी चुनावों में पार्टी के लिए लाभकारी हो सकती है।