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गैबॉन तख्तापलट का कारण:
अफ्रीका के एक और देश में तख्तापलट हुआ है. नाइजर के बाद अब गैबॉन में सैन्य अधिकारियों ने राष्ट्रपति को सत्ता से बाहर कर दिया है. अफ्रीका के मध्य में मौजूद गैबॉन में सैन्य अधिकारियों ने बुधवार को ऐलान किया कि उन्होंने जनता की तरफ से सत्ता को अपने हाथ में ले लिया है. वर्तमान सरकार को खत्म किया जा रहा है. हाल ही में हुए आम चुनावों के नतीजे आने के तुरंत बाद ही तख्तापलट को अंजाम दिया गया है.
आम चुनाव के नतीजों में अली बोंगो ओन्डिम्बा को जीत मिली और वह तीसरी बार देश के राष्ट्रपति बनने वाले थे. हालांकि, इससे पहले की वह शपथ ले पाते, सेना ने उनका तख्तापलट ही कर दिया. गैबॉन के राष्ट्रपति अली बोंगो की पहचान अफ्रीका के सबसे भ्रष्ट नेताओं के तौर पर होती है. हालांकि, गैबॉन में हुए तख्तापलट को लोगों का सपोर्ट मिल रहा है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर अफ्रीकी मुल्कों में तख्तापलट को लोग क्यों सपोर्ट कर रहे हैं.
राष्ट्रपति चुनाव पर क्या बोली सेना?
वियोन की रिपोर्ट के मुताबिक, एक सैन्य अधिकारी ने टीवी पर आकर कहा कि 26 अगस्त को हुए चुनाव और उसके नतीजों को रद्द किया जाता है. अगले आदेश तक देश की सीमा बंद कर दी गई है. देश के सभी संस्थान भंग कर दिए गए हैं. सेना का कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव में धांधली हुई है. गैर-जिम्मेदार सरकार की वजह से देश की एकजुटता को नुकसान पहुंचा है. ये अराजकता देश के लिए खतरा पैदा कर सकती है.
कहां हैं राष्ट्रपति अली बोंगो?
राष्ट्रपति अली बोंगो को नजरबंद कर रखा गया है. अली बोंगो ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें वह अपने दोस्तों से अपील कर रहे हैं कि वो उनकी मदद करें. वीडियो में वह कहते हैं कि मैं अपने सभी दोस्तों से कहना चाहता हूं कि वे मेरे साथ हुए बर्ताव की जानकारी दुनिया को दें. यहां मौजूद लोगों ने मुझे और मेरे परिवार को गिरफ्तार कर लिया है. मुझे नहीं मालूम है कि अभी देश में क्या हो रहा है.
कहां है गैबॉन?
सबसे पहले जानते हैं कि आखिर अफ्रीका में गैबॉन कहां मौजूद है. गैबॉन की आबादी 20 लाख है. ये देश अटलांटिक महासागर से सटा हुआ है और अफ्रीका के मध्य-पश्चिम में मौजूद है. फ्रांस की पूर्व कॉलोनी रहे इस देश की सीमाएं कैमरून, इक्वोटोरियल गिनी और कांगो से लगती है. फ्रांस ने 1885 में गैबॉन पर कब्जा किया था. 15 जुलाई 1960 को गैबॉन को फ्रांस से आजादी मिली.
अफ्रीका के इस देश में तेल भी पाया जाता है. यही वजह है कि गैबॉन ‘ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज’ यानी ओपेक (OPEC) का सदस्य है. यहां से हर दिन 1,81,000 बैरल तेल निकाला जाता है. अफ्रीकी देशों में तेल उत्पादन के मामले में गैबॉन आठवें नंबर पर है. कम आबादी और प्राकृतिक संसाधन के बावजूद ये गरीब मुल्कों की कैटेगरी में आता है.
तख्तापलट पर कैसा रही लोगों की प्रतिक्रिया?
सेना ने जैसे ही तख्तापलट का ऐलान किया, उसके तुरंत बाद गैबॉन की राजधानी लिब्रेविल में लोगों की भीड़ सड़कों पर उतर आई. लोग देश में हुए तख्तापलट का जश्न मनाने लगे. लोगों को राष्ट्रपति आवास के बाहर जश्न मनाते हुए देखा गया. ऐसा ही कुछ नाइजर में भी तख्तापलट के बाद देखने को मिला था. सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में लोगों को सड़कों पर गुजरते सेना के वाहनों के आगे जश्न मनाते हुए देखा गया. लोग सेना की वाहवाही भी कर रहे हैं.
क्यों बाकी मुल्कों से अलग है गैबॉन में तख्तापलट?
अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में नाइजर और बुर्किना फासो में हुए तख्तापलट गैबॉन में हुए तख्तापलट से बिल्कुल अलग है. सबसे बड़ी वजह है कि साहेल क्षेत्र के मुल्क आतंकवाद और अस्थिरता से जूझ रहे हैं. हालांकि, गैबॉन में ऐसा नहीं है, यहां आतंक का साया बहुत ही कम है. भले ही देश में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी है, मगर ये मुल्क स्थिर है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, गैबॉन की 15-24 साल की 40 फीसदी आबादी 2020 में बेरोजगार थी.
क्यों लोग कर रहे तख्तापलट को सपोर्ट?
अफ्रीका के ज्यादातर देशों में बेशकीमती खनिज संपदा मौजूद है. लेकिन यहां की सरकारें बहुत ही ज्यादा भ्रष्ट हैं. अगर किसी को सत्ता मिल जाती है, तो वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते हैं. पश्चिमी मुल्कों के साथ साठ-गांठ करके भ्रष्ट नेता खूब पैसा बना रहे हैं. ज्यादातार नेताओं के संबंध फ्रांस से हैं. खनिज संपदा के जरिए जो कमाई हो रही है, उसका इस्तेमाल देश की जनता के लिए करने के बजाय राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री अपने ऊपर कर रहे हैं.
अगर गैबॉन का ही उदाहरण लें, तो यहां राष्ट्रपति ने अपने और अपने परिवार के ऊपर खूब पैसा लुटाया. एक बार अली बोंगो ने क्रिसमस मनाने के लिए नकली बर्फ मंगवाई, ताकि उनका परिवार बर्फ के बीच क्रिसमस मना सके. राष्ट्रपति अली बोंगो ने 2009 से गैबॉन पर शासन किया, जबकि उनके पिता राष्ट्रपति उमर बोंगो ने 1967 से 2009 तक गैबॉन की सत्ता संभाली. इस तरह आजादी के बाद के 60 सालों में से 56 साल तक बोंगो परिवार का ही शासन रहा.
सिर्फ गैबॉन ही नहीं, बल्कि ऐसा हर अफ्रीकी मुल्क में देखने को मिल रहा है. अफ्रीकी देशों की जनता बेहद गरीब है. बेरोजगारी बड़े पैमाने पर फैली हुई है. इस वजह से जब सेना के जरिए तख्तापलट किया जाता है, तो लोग इसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लेते हैं. लोगों को लगता है कि सेना के सत्ता संभालने के बाद शायद उनकी स्थिति सुधर जाए. इसलिए जब भी अफ्रीकी देशों में तख्तापलट हो रहा है, लोग उसे पूरी तरह से सपोर्ट कर रहे हैं.
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