अमेरिका-चीन: अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापारिक तनाव ने एक नया रुख ले लिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 12 अप्रैल को घोषित टैरिफ बढ़ोतरी के तुरंत बाद चीन ने एक आक्रामक कदम उठाते हुए दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Elements) और उनसे बनने वाले चुंबकों के निर्यात पर नई पाबंदियां लागू कर दी हैं। यह कदम अमेरिकी सैन्य और तकनीकी आपूर्ति श्रृंखला के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
चीन सरकार ने एक नई विनियामक प्रणाली का मसौदा तैयार किया है, जिसके तहत कारों, ड्रोन, रोबोट और मिसाइल जैसे उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले विशेष चुंबकों के निर्यात पर रोक लगाई गई है। अब इन निर्यातों के लिए विशेष लाइसेंस की आवश्यकता होगी और अनधिकृत निर्यात पर बंदरगाहों से ही कंटेनर रोक दिए जाएंगे।

क्या हैं ये दुर्लभ खनिज और चुंबक?
दुर्लभ खनिजों में नियोडिमियम, डाइस्प्रोसियम, टेरबियम और प्रासीडियम जैसे तत्त्व आते हैं, जो चीन में भारी मात्रा में पाए जाते हैं और वहीं पर परिष्कृत किए जाते हैं। इनसे बनने वाले चुंबक छोटे आकार में अधिक ताकतवर होते हैं और हाई-परफॉर्मेंस इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए जरूरी हैं।
ये चुंबक मुख्यतः निम्न क्षेत्रों में प्रयोग होते हैं:
- इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs)
- ड्रोन और रोबोटिक्स
- मिसाइल व रक्षा प्रणाली
- जेट इंजन और लेजर उपकरण
- एयरोस्पेस व अंतरिक्ष यान
- AI सर्वर व स्मार्टफोन चिप्स
अमेरिका की प्रतिक्रिया
अमेरिका के प्रमुख आर्थिक सलाहकार केविन हैजेट ने चीन के इस कदम को “गंभीर चिंता” का विषय बताया है। उन्होंने कहा कि दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति रोकना वैश्विक तकनीकी आपूर्ति श्रृंखला के लिए खतरनाक संकेत है। ट्रंप प्रशासन इस स्थिति का गहराई से अध्ययन कर रहा है और सभी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है, जिनमें वैकल्पिक आपूर्ति स्रोत तलाशना भी शामिल है।

वैश्विक प्रभाव की आशंका
दुर्लभ खनिजों के इस रोक से न केवल अमेरिका बल्कि दुनिया भर के उच्च तकनीक क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, और फ्रांस जैसे देशों की कंपनियां भी इन पर निर्भर हैं। सेमीकंडक्टर, ऑटो पार्ट्स और सैन्य उपकरण बनाने वाली कंपनियों को अपने उत्पादन में व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है।