Saturday, June 28, 2025
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“सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में नहीं रहने दिया जाएगा”

नई दिल्ली: भारत में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों के भविष्य को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने दिल्ली में बसे रोहिंग्या समुदाय के लोगों के संभावित निर्वासन पर अंतरिम रोक लगाने से स्पष्ट इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि संविधान में निवास का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को प्राप्त है, जबकि विदेशी नागरिकों के मामलों में विदेशी अधिनियम, 1946 के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जाएगी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एन. कोटेश्वर सिंह की तीन सदस्यीय पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्विस और वकील प्रशांत भूषण द्वारा दायर याचिकाओं पर विचार करते हुए यह स्पष्ट किया कि मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई को की जाएगी।

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याचिकाकर्ताओं के तर्क

गोंसाल्विस और भूषण ने अदालत में तर्क दिया कि रोहिंग्या समुदाय को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHCR) ने शरणार्थी के रूप में मान्यता दी है और उनके पास अधिकृत शरणार्थी कार्ड हैं। इसके आधार पर उन्होंने अनुरोध किया कि रोहिंग्या समुदाय को भारत में शरण दी जाए और उन्हें जबरन निर्वासित न किया जाए।

याचिकाकर्ताओं ने म्यांमार में हो रहे कथित नरसंहार और मानवाधिकार उल्लंघनों का हवाला देते हुए कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों की जान को वापसी की स्थिति में गंभीर खतरा हो सकता है।

केंद्र सरकार का पक्ष

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अधिवक्ता कानू अग्रवाल ने अदालत को बताया कि भारत 1951 की UN Refugee Convention का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, इसलिए UNHCR द्वारा दी गई शरणार्थी मान्यता भारत के लिए बाध्यकारी नहीं है।

केंद्र ने यह भी कहा कि पहले भी सुप्रीम कोर्ट असम और जम्मू-कश्मीर में बसे रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर चुका है। उस समय सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर खतरा बताते हुए रोहिंग्या समुदाय को देश से हटाने की बात कही थी।

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कोर्ट की टिप्पणी

कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों पर लागू होता है, चाहे वे नागरिक हों या विदेशी। लेकिन निवास और शरण का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को संविधान के तहत प्राप्त है।

पीठ ने स्पष्ट किया कि रोहिंग्या मुसलमानों को जीवन के अधिकार की सुरक्षा प्राप्त है, लेकिन चूंकि वे विदेशी हैं, इसलिए उनके मामलों में निर्णय विदेशी अधिनियम, 1946 और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया जाएगा।

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