नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि उपराज्यपाल (एलजी) सरकार से सलाह लिए बिना नगर निगम में एल्डरमैन की नियुक्ति कर सकते हैं। यह फैसला आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के लिए एक बड़ा झटका है, जो कि इस निर्णय को चुनौती देते हुए कोर्ट में याचिका दायर की थी।
एलजी की वैधानिक शक्ति
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नगर निगम अधिनियम के तहत उपराज्यपाल को वैधानिक शक्ति दी गई है, जबकि सरकार कार्यकारी शक्ति पर काम करती है। न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने बताया कि धारा 3(3)(बी)(आई) के तहत विशेष ज्ञान वाले व्यक्तियों को नामित करने की वैधानिक शक्ति पहली बार डीएमसी अधिनियम 1957 के 1993 के संशोधन द्वारा उपराज्यपाल को दी गई थी। इस निर्णय के अनुसार, एलजी को कानून के अनुसार कार्य करना चाहिए, न कि दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार।
विवाद की जड़
दिल्ली नगर निगम में 250 निर्वाचित और 10 नामांकित सदस्य हैं। दिल्ली सरकार का आरोप था कि उपराज्यपाल ने उसकी सहायता और सलाह के बिना 10 सदस्यों को नामित किया था। आप सरकार ने इसे चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मई 2023 में फैसला सुरक्षित रखा था।
सीजेआई की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले पर विचार करते हुए कहा था कि उपराज्यपाल को एमसीडी में ‘एल्डरमैन’ नामित करने का अधिकार देने का मतलब है कि वह निर्वाचित नगर निकाय को अस्थिर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल के पास केवल दो ही विकल्प हैं: चुनी हुई सरकार की ओर से सुझाए गए नामों को मंजूर करना या इसे राष्ट्रपति के पास भेज देना।
दिल्ली सरकार का दावा
दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में दावा किया था कि 1991 में संविधान के अनुच्छेद 239AA के लागू होने के बाद से यह पहली बार है कि उपराज्यपाल ने चुनी हुई सरकार को पूरी तरह दरकिनार करते हुए इस तरह से ‘एल्डरमैन’ को नामित किया है। सरकार का कहना था कि एलजी मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं।
एल्डरमैन की भूमिका
दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ये मेयर के चुनाव या किसी बिल को पास करने के दौरान वोट नहीं कर सकते, लेकिन ये जोनल कमेटियों में मतदान कर सकते हैं। नगर निगम की सबसे ताकतवर स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव के लिए जोनल कमेटियों से ही सदस्य चुनकर आते हैं। ऐसे में स्टैंडिंग कमेटी के गठन में अप्रत्यक्ष तरीके से एल्डरमैन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।
विवाद का परिणाम
इस विवाद के कारण पिछले मेयर के चुनाव के समय ही उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने 10 एल्डरमैन की नियुक्ति कर दी थी। भाजपा उन्हें मतदान का अधिकार दिलाने की कोशिश कर रही थी, जबकि आप एल्डरमैन को पिछली परंपरा के अनुसार वोट डालने का अधिकार देने को तैयार नहीं थी। अंततः यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय की चौखट पर पहुंच गया था, जिसमें अदालत ने एल्डरमैन को नगर निगम के सदन में वोटिंग का अधिकार देने से मना कर दिया था।