चिड़ावा, 22 अप्रैल 2025: जैसे ही किसी प्रतिष्ठित परीक्षा का परिणाम घोषित होता है, चिड़ावा शहर के चौक-चौराहों, गलियों और बिजली के खंभों पर शिक्षण संस्थानों के विज्ञापन बैनर और होर्डिंग्स की बाढ़ आ जाती है। हर ओर सिर्फ एक ही संदेश—”हमारे छात्र ने किया कमाल!” दिखाई देता है।
कोचिंग सेंटरों और निजी स्कूलों के इन विज्ञापनों में सफल छात्रों की तस्वीरें और अंक बड़े गर्व से प्रदर्शित किए जाते हैं। इन बैनरों में दावा किया जाता है कि छात्र की सफलता में उस संस्थान की अहम भूमिका रही है। परंतु वास्तवकिता इससे उलट होती है।
एक ही छात्र, कई संस्थानों के पोस्टरों में
शहर में अक्सर यह देखा गया है कि एक ही सफल छात्र की तस्वीर दो या तीन अलग-अलग संस्थानों के विज्ञापनों में नजर आती है। हर संस्थान यह दावा करता है कि वह छात्र उनके यहां पढ़ा था और उसकी सफलता उनके मार्गदर्शन का परिणाम है। पर हकीकत यह है कि कई बार वह छात्र किसी अन्य शहर या संस्थान से परीक्षा की तैयारी करता है और सिर्फ नाममात्र की कोचिंग यहां से ली होती है या कभी-कभी तो बिल्कुल भी नहीं।

अभिभावक होते हैं गुमराह
अभिभावक इन आकर्षक विज्ञापनों को देखकर यह मान बैठते हैं कि यह संस्थान ही बेहतर हैं और अपने बच्चों को वहीं दाखिला दिला देते हैं। उन्हें यह समझ नहीं आता कि एक ही छात्र की तस्वीर कैसे कई जगहों पर दिखाई जा रही है। न ही उनके पास कोई विश्वसनीय स्रोत होता है जिससे वे जान सकें कि कौन-सा संस्थान सच बोल रहा है और कौन झूठ।
सरकार से कार्रवाई की मांग
शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार के भ्रामक प्रचार से न सिर्फ छात्रों का भविष्य प्रभावित हो सकता है, बल्कि यह पूरे शैक्षणिक तंत्र की साख को भी नुकसान पहुंचाता है। ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि सरकार इस ओर ध्यान दे और झूठे दावे करने वाले संस्थानों पर कार्रवाई करे।
स्थानीय अभिभावकों और शिक्षाविदों का कहना है कि शिक्षा को व्यवसाय नहीं बनाया जाना चाहिए। छात्रों की मेहनत का श्रेय जबरदस्ती लेने की प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए, ताकि वास्तविक मेहनत करने वाले संस्थान और छात्र दोनों के साथ न्याय हो सके।