44 डिग्री टेंपरेचर में चिड़ावा के निवासी घंटों तक बिजली कटौती का दंश झेलने को अभिशप्त हैं। तापमान की यह वो अवस्था है, जिस पर पानी भी उबलना शुरू हो जाता है, ऐसे में रोजाना 3 से 4 घंटों तक हो रही विद्युत कटौती से आमजन बेहाल है। सोमवार को तो विद्युत विभाग द्वारा की गई कटौती का आलम ये था कि शहर के कई इलाकों में सुबह 10 बजे गई लाईट शाम 7 बजे बाद भी बहाल नहीं हो पाई है।
लगातार 9 – 10 घंटों की कटौती के चलते लोगों के घरों-दुकानों में लगे इन्वर्टर की भी सांसें उखड़ने लगीं। जिनके यहां इन्वर्टर नहीं है, वे भीषण गर्मी में दिन भर विद्युत विभाग को कोसते नजर आए। विभाग की कार्यशैली का आलम ये है कि एईएन, जेईएन, कांट्रेक्टर और अन्य कोई अधिकारी-कर्मचारी परेशानहाल आम जनता के फोन तक उठाना मुनासिब नहीं समझते।
कहने को जिला कलेक्टर ने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को फील्ड में एक्टिव कर रखा है, लेकिन सक्रियता का रिजल्ट भी ढाक के तीन पात ही नजर आ रहा है। प्रदेश में सरकार बदली और इस परिवर्तन के बाद स्थानीय स्तर पर प्रभावी नेताओं के बाद मेंटीनेंस के लिए लगे ठेकेदार को भी बदल दिया गया। खासतौर पर गर्मी के मौसम को ध्यान में रखते हुए कई बार 4-5 घंटों तक मेंटीनेंस के लिए कटौती भी की गई। इसके बावजूद भीषण गर्मी में घंटों तक की जा रही अघोषित कटौती के बाद जब लोगों का दबाव बनता है तो ठेकेदारों की गाड़ियों को इधर से उधर दौड़ते देखा जाता है, लेकिन फॉल्ट फिर भी नहीं मिलता।
लोगों में इस बात को लेकर भी आक्रोश है कि जब चुनाव आते हैं, तब अलग-अलग जाति – प्रजाति के नेता/कार्यकर्ता तमाम तकलीफों को दूर करने के दावों के साथ मतदाता के चरण पघारते नजर आते हैं, लेकिन पानी और बिजली जैसी मूलभूत सेवाओं में भी इस कदर की जा रही लापरवाही पर बोलने के लिए कोई तैयार नहीं होता। अधिकारी भी वातानुकूलित दफ्तरों में बैठ कर आंकड़ों का खेल ही खेलते प्रतीत होते हैं, क्योंकि जमीनी स्तर पर हालात में कोई सुधार होता नहीं दिखता।