Monday, April 14, 2025
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‘शरबत जिहाद’ के बाद अब ‘धर्म संकट’? बाबा रामदेव के ताज़ा बयान से उठे सवाल

नई दिल्ली: बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद कंपनी एक बार फिर से विवादों में है। इस बार मुद्दा है ‘शरबत जिहाद’ और उसके जरिए एक विशेष शरबत ब्रांड पर किए गए अप्रत्यक्ष हमले का, जिसे बाबा रामदेव ने पहले टॉयलेट क्लीनर बताया और अब इसे धार्मिक रूप दे दिया है।

हाल ही में बाबा रामदेव का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें उन्होंने कथित तौर पर आरोप लगाया कि एक शरबत बेचने वाली कंपनी अपनी कमाई का हिस्सा मस्जिदों और मदरसों के निर्माण में लगाती है। इस वीडियो में रामदेव ने कहा,

“गर्मियों में लोग प्यास बुझाने के नाम पर जो पेय पीते हैं, वे असल में टॉयलेट क्लीनर जैसे हैं। एक तरफ टॉयलेट क्लीनर जैसे ज़हर का हमला है और दूसरी ओर एक कंपनी है जो इससे कमाई कर धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा देती है। यह उनका धर्म है, लेकिन हमें सोचने की जरूरत है कि हम क्या पी रहे हैं।”

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अखबारों में विज्ञापन: ‘धन और धर्म की बर्बादी क्यों?’

पतंजलि ने अब देशभर के प्रमुख अखबारों में एक बड़ा विज्ञापन प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने उपभोक्ताओं से यह सवाल किया है:

“जब पतंजलि का श्रेष्ठतम गुलाब शरबत, बेल शरबत, ब्राह्मी शरबत और ठंडाई पाउडर उपलब्ध हैं, तो फिर पुराने ढर्रे वाले शरबत पर धन और धर्म की बर्बादी क्यों?”

विज्ञापन की पंचलाइन थी:

“सर्वधर्म और राष्ट्रधर्म सर्वोपरि”

इस विज्ञापन में पतंजलि ने सीधे तौर पर दुकानदारों और उपभोक्ताओं से अपील की कि वे अपने प्रतिष्ठानों में पतंजलि शरबत को प्रमुख स्थान दें। साथ ही, भारतीय परंपरा और धर्म का हवाला देते हुए उन्होंने अपने उत्पादों को शुद्ध, आयुर्वेदिक और देशहितैषी बताया।

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सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

इस पूरे घटनाक्रम ने ट्विटर (अब X), फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों पर तीखी प्रतिक्रियाएं जन्म दी हैं।

  • कुछ लोगों ने बाबा रामदेव और पतंजलि का समर्थन करते हुए इसे ‘देसी बनाम विदेशी सोच’ करार दिया।
  • वहीं, अनेक यूज़र्स और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस बयानबाज़ी को साम्प्रदायिक तनाव भड़काने वाला बताया।
  • कई लोगों ने यह सवाल भी उठाया कि एक व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा को धार्मिक रूप देना कहां तक उचित है।

कानूनी और सरकारी प्रतिक्रिया का इंतजार

अब यह देखना बाकी है कि पतंजलि के इस प्रचार अभियान और बाबा रामदेव के बयानों पर सरकार या किसी संबंधित संस्थान की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया आती है या नहीं। कुछ संगठनों ने इसे धार्मिक भावनाएं भड़काने की कोशिश बताया है और कानूनी कार्रवाई की मांग भी की है।

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