नई दिल्ली, 8 अगस्त 2024: भारत की शीर्ष अदालत ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी के वेतनमान में कटौती और अतिरिक्त राशि की वसूली का कोई भी कदम दंडात्मक कार्रवाई जैसा माना जाएगा, जिसका दीवानी और बुरे परिणाम होंगे।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति आर महादेवन शामिल थे, ने बिहार सरकार द्वारा अक्टूबर 2009 में जारी आदेश को रद्द कर दिया। यह आदेश एक सेवानिवृत्त कर्मचारी के वेतनमान में कटौती और अतिरिक्त राशि की वसूली के लिए था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार का यह निर्णय पिछली तारीख से लागू नहीं हो सकता और विशेष रूप से लंबी अवधि के बाद इसे लागू करना उचित नहीं है।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, “हमारा विचार है कि वेतनमान में कटौती और सरकारी कर्मचारी से वसूली का कोई भी कदम दंडात्मक कार्रवाई के समान होगा क्योंकि इसके कठोर दीवानी और बुरे परिणाम होंगे।”
यह फैसला एक सेवानिवृत्त कर्मचारी की ओर से दायर की गई अपील पर आया, जिसने पटना उच्च न्यायालय के अगस्त 2012 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कर्मचारी ने पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए दावा किया था कि उनकी वेतनमान में कटौती और अतिरिक्त राशि की वसूली के आदेश अनुचित और असंगत थे।