Saturday, June 21, 2025
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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर प्रधानमंत्री ने विशाखापट्टनम से दिया वैश्विक शांति और स्वास्थ्य का संदेश

विशाखापट्टनम: शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025 के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम का नेतृत्व करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग की वैश्विक यात्रा और उसके मानवता पर प्रभाव की चर्चा की। उन्होंने कहा कि योग न केवल आत्मिक संतुलन का माध्यम है, बल्कि यह दुनिया को तनाव और अस्थिरता के दौर में शांति और स्थायित्व की राह भी दिखाता है।

प्रधानमंत्री ने 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत द्वारा 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किए जाने के प्रस्ताव को याद करते हुए कहा कि कम समय में 175 देशों का समर्थन मिलना एक असाधारण उपलब्धि थी। यह केवल प्रस्ताव का समर्थन नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण के लिए दुनिया का सामूहिक प्रयास था।

उन्होंने कहा कि आज की दुनिया तनाव और संकट से जूझ रही है और ऐसे समय में योग संतुलन की सांस लेने और स्वयं पर नियंत्रण पाने का एक प्रभावी माध्यम बन गया है। उन्होंने इसे ‘पॉज बटन’ बताया जो व्यक्ति और समाज को शांति की ओर ले जाता है।

प्रधानमंत्री ने योग के वैज्ञानिक और शोध आधारित स्वरूप को रेखांकित करते हुए बताया कि भारत में कई बड़े चिकित्सा संस्थान योग पर अनुसंधान कर रहे हैं ताकि इसे आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ जोड़ा जा सके। उन्होंने कहा कि योग अब केवल अभ्यास नहीं रहा, बल्कि एक जीवनशैली बन गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि आज दिव्यांग साथी योग शास्त्र पढ़ रहे हैं और वैज्ञानिक अंतरिक्ष में भी योग कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने आह्वान किया कि योग को एक जन आंदोलन के रूप में अपनाया जाए, जिससे यह विश्व को समरसता, स्वास्थ्य और शांति की दिशा में ले जाए। उन्होंने कहा कि ‘Yoga For One Earth, One Health’ एक वैश्विक संकल्प बने और हर व्यक्ति दिन की शुरुआत योग से करे ताकि जीवन में संतुलन प्राप्त किया जा सके।

उन्होंने इस अवसर पर वैश्विक समुदाय से आग्रह किया कि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मानवता के लिए योग की एक नई शुरुआत माना जाए। यह वह दिन हो जब आंतरिक शांति को वैश्विक नीति का हिस्सा बनाया जाए और योग को वैश्विक साझेदारी और एकता का माध्यम समझा जाए।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि योग हमें यह सिखाता है कि हम प्रकृति का हिस्सा हैं और एक व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि समाज और धरती के लिए भी जिम्मेदार हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति की उस भावना को रेखांकित किया, जो ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ में निहित है – जहां सभी का कल्याण ही सर्वोच्च कर्तव्य है।

उन्होंने अपने संबोधन के अंत में कहा कि योग केवल व्यक्तिगत साधना नहीं, बल्कि यह ‘मैं’ से ‘हम’ की यात्रा है जो सेवा, समर्पण और सह-अस्तित्व की नींव बनती है।

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