ईरान: सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के सार्वजनिक रूप से सामने आने के बाद पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका और इजराइल की चिंता बढ़ गई है। खामेनेई की यह सक्रियता ऐसे समय में सामने आई है जब ईरान का परमाणु कार्यक्रम फिर से सक्रिय हो चुका है। हाल ही में अमेरिका और इजराइल की ओर से ईरान के परमाणु ठिकानों पर किए गए हमलों के बावजूद स्थायी नुकसान नहीं हो सका और ईरान ने इन ठिकानों की मरम्मत कर ली है।
पश्चिमी एजेंसियों के अनुसार, ईरान के संवेदनशील परमाणु केंद्र — फोर्दो, इस्फहान और नतांज — पर बंकर बस्टर बमों और टॉमहॉक मिसाइलों से हमला किया गया था, लेकिन सैटेलाइट तस्वीरों और खुफिया रिपोर्टों से यह स्पष्ट हो गया है कि सिर्फ सतह पर क्षति हुई और भूमिगत संरचनाएं तथा यूरेनियम भंडारण सुरक्षित रहे। नतांज में 1700 सेंट्रीफ्यूज के ध्वस्त होने का दावा किया गया था, लेकिन ईरान ने इनकी मरम्मत और पुनर्संरचना शुरू कर दी है। इसी तरह अराक और बुशहर में भी क्षति की भरपाई कर ली गई है।
ईरान के दोबारा परमाणु संवर्धन प्रक्रिया शुरू करने की खबरों से इजराइल की रणनीतिक प्रतिक्रिया तेज हो गई है। मोसाद द्वारा साइबर हमला और खुफिया नेटवर्क के ज़रिये रूस, चीन और उत्तर कोरिया में निगरानी बढ़ा दी गई है। आशंका जताई जा रही है कि ईरान अब अपने परमाणु कार्यक्रम को किसी अन्य देश में स्थानांतरित कर सकता है, जहां पर पश्चिमी हमला करना अधिक जोखिमपूर्ण होगा। अमेरिकी एजेंसियों को संदेह है कि यह कार्यक्रम रूस या उत्तर कोरिया में गुप्त रूप से शुरू हो सकता है, जहां ईरान को हथियारों और तकनीकी सहयोग की संभावनाएं अधिक हैं।
इजराइल और अमेरिका की सैन्य तैयारियां भी इस बीच तेज हो गई हैं। फारस की खाड़ी में अमेरिकी पनडुब्बियां, बंकर बस्टर बमों की नई खेप और अजरबैजान एयरस्पेस की संभावित मदद जैसे विकल्पों पर चर्चा की जा रही है। साथ ही पेंटागन और इजराइली सुरक्षा एजेंसियां संभावित ऑपरेशन के लिए लोकेशन ट्रैकिंग और सैन्य रणनीति पर काम कर रही हैं।
इस घटनाक्रम के बीच अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक समीकरण भी प्रभावित हो रहे हैं। अमेरिका और इजराइल द्वारा किए गए हमलों को लेकर अरब देशों और कुछ यूरोपीय राष्ट्रों में सहानुभूति का झुकाव ईरान की ओर देखा जा रहा है। खामेनेई ने मुस्लिम देशों के साथ धार्मिक और वैचारिक एकता के माध्यम से एक गठबंधन बनाने के संकेत दिए हैं। अगर यह प्रयास सफल हुआ तो यह टकराव व्यापक संघर्ष में बदल सकता है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका और इजराइल ने दोबारा हमला किया, तो यह टकराव केवल सैन्य स्तर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह धार्मिक और वैश्विक शक्ति संघर्ष में तब्दील हो सकता है। अगर मुस्लिम देशों का एक बड़ा हिस्सा खामेनेई के समर्थन में आता है, तो यह टकराव संभावित रूप से तीसरे विश्वयुद्ध की भूमिका निभा सकता है, जिसका केंद्र बिंदु मध्य-पूर्व बन सकता है।
वर्तमान में अमेरिका के सैन्य ठिकाने उच्च सतर्कता पर हैं और इजराइल भी अपने गुप्त एजेंटों के माध्यम से ईरान में संभावित लक्ष्यों की जानकारी जुटा रहा है। अमेरिका और इजराइल दोनों इस बार संयुक्त सैन्य कार्रवाई की संभावना पर विचार कर रहे हैं, जिससे ईरान के परमाणु कार्यक्रम को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सके।
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि अगला हमला कब और कहां होगा, लेकिन स्थिति तेजी से उस दिशा में बढ़ रही है जहां कूटनीति से अधिक सैन्य विकल्पों पर भरोसा किया जा रहा है। आने वाले समय में ईरान, अमेरिका और इजराइल के बीच यह टकराव वैश्विक स्थिरता के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है।