Tuesday, July 8, 2025
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जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लेकर विपक्षी दलों ने दी सैद्धांतिक सहमति, जल्द शुरू होगी सांसदों के हस्ताक्षर जुटाने की प्रक्रिया

नई दिल्ली: कैश कांड़ में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा के उपर महाभियोग प्रस्ताव की तलवार लटक चुकी है।केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू ने गुरुवार को जानकारी दी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को हटाने के प्रस्ताव को लेकर प्रमुख विपक्षी दलों ने सैद्धांतिक रूप से समर्थन दे दिया है। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव के लिए सांसदों से हस्ताक्षर एकत्र करने की प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जा सकती है। हालांकि, यह अभी तय नहीं किया गया है कि प्रस्ताव संसद के किस सदन में पेश किया जाएगा।

यदि यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाता है, तो इसके लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होगी, जबकि राज्यसभा में लाने की स्थिति में न्यूनतम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होगा। रिजीजू ने कहा कि इस विषय में निर्णय लेने के बाद सांसदों से हस्ताक्षर जुटाने की प्रक्रिया आरंभ कर दी जाएगी।

गौरतलब है कि संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से प्रारंभ होकर 21 अगस्त तक चलेगा। यदि इस दौरान प्रस्ताव संसद में स्वीकार कर लिया जाता है, तो न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति एक तीन सदस्यीय समिति का गठन करेंगे। यह समिति उस आधार की जांच करेगी, जिस पर न्यायाधीश को हटाने की मांग की गई है।

इस समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश, किसी एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता को शामिल किया जाता है। इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर संसद में आगे की कार्यवाही तय की जाती है।

केंद्रीय मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि मामला न्यायपालिका से जुड़े भ्रष्टाचार का है, इसलिए सरकार चाहती है कि सभी राजनीतिक दल इस संवेदनशील प्रक्रिया में सम्मिलित हों और सहयोग करें। उन्होंने यह भी कहा कि जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास पर नकदी मिलने की जांच को लेकर गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट में उन्हें दोषी नहीं ठहराया है। बल्कि रिपोर्ट का उद्देश्य यह था कि संसद को भविष्य में इस विषय पर क्या कदम उठाने चाहिए, इसकी सिफारिश दी जा सके।

उन्होंने दोहराया कि न्यायाधीश को पद से हटाने का एकमात्र अधिकार संसद को ही है और यही कारण है कि प्रक्रिया को विधिसम्मत और सर्वसम्मति से पूरा करने की कोशिश की जा रही है।

यह मामला उच्च न्यायपालिका की निष्पक्षता और जवाबदेही से जुड़ा होने के कारण देश की राजनीति और न्यायिक व्यवस्था में विशेष महत्व रखता है।

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