पटना: बिहार की राजनीति में आम आदमी पार्टी ने बड़ा दांव खेलते हुए आगामी विधानसभा चुनाव की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली इस पार्टी की इस घोषणा से राज्य की सियासत में नई हलचल मच गई है। पार्टी ने स्पष्ट किया है कि उसका ‘इंडि’ गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव तक सीमित था और अब वह राज्य में स्वतंत्र रूप से विधानसभा चुनाव लड़ेगी।
इस फैसले के बाद माना जा रहा है कि महागठबंधन के प्रमुख चेहरे तेजस्वी यादव की रणनीति को झटका लग सकता है। आम आदमी पार्टी के मैदान में उतरने से महागठबंधन के वोटों में विभाजन की संभावना जताई जा रही है, जिसका सीधा लाभ नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए को मिल सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जब दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, तब इसका फायदा भाजपा को मिला था। बिहार में भी ऐसा ही परिदृश्य बनता दिख रहा है।
आम आदमी पार्टी की ओर से मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल खुद चुनावी रणनीति तैयार कर रहे हैं। पार्टी राज्य के जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों का चयन करेगी। फिलहाल पार्टी ने बिहार में अपनी संगठनात्मक ताकत को बढ़ाने और आम लोगों से सीधा संवाद स्थापित करने के लिए 31 मई से सात चरणों में ‘केजरीवाल जनसंपर्क यात्रा’ की शुरुआत कर रखी है। इस यात्रा के माध्यम से पार्टी जनता से सीधे संपर्क कर राज्य में अपनी विचारधारा और योजनाओं को समझाने का प्रयास कर रही है।
पार्टी का मानना है कि बिहार में वह विकल्प के रूप में उभर सकती है, खासकर उन मतदाताओं के लिए जो परंपरागत राजनीति से असंतुष्ट हैं। हालांकि, पार्टी को यह भी स्पष्ट रूप से समझ है कि जातीय समीकरणों से बंधे इस राज्य में अपनी जड़ें जमाना आसान नहीं होगा, इसलिए उसके रणनीतिकार ज़मीनी स्तर पर व्यापक तैयारी कर रहे हैं।
विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी की यह निर्णायक एंट्री महज एक राजनीतिक फैसला नहीं, बल्कि विपक्षी एकता के भविष्य पर भी सवाल खड़े करती है। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि आम आदमी पार्टी किन उम्मीदवारों को टिकट देती है और किस जातीय, सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति आगे बढ़ाती है।