नई दिल्ली: कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को गुजरात में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि प्रतापगढ़ी के कृत्य को अपराध नहीं कहा जा सकता।

साहित्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति अभय एस ओका ने कहा, “साहित्य, कला, व्यंग्य और नाटक जैसे माध्यम जीवन को सार्थक बनाते हैं। गरिमापूर्ण जीवन के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आवश्यक है। न्यायालय का कर्तव्य है कि वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे। भले ही बहुसंख्यक लोग किसी विचार से असहमत हों, फिर भी विचारों की अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए।”
गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती
कांग्रेस नेता ने इससे पहले गुजरात उच्च न्यायालय के 17 जनवरी के आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा था कि एफआईआर को रद्द करने की मांग पर विचार करना उचित नहीं है, क्योंकि जांच प्रारंभिक चरण में थी।
क्या है मामला?
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें वे हाथ हिलाते हुए चलते नजर आ रहे थे और उन पर फूलों की वर्षा की जा रही थी। इस 46 सेकंड के वीडियो में बैकग्राउंड में “ऐ खून के प्यासे बात सुनो” गाना बज रहा था।

गुजरात पुलिस ने इस वीडियो को लेकर एफआईआर दर्ज की थी। पुलिस का आरोप था कि वीडियो में इस्तेमाल किया गया गाना भड़काऊ है और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा कर सकता है। पुलिस ने इसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला भी बताया था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि इस मामले में सांसद इमरान प्रतापगढ़ी द्वारा किया गया कार्य संविधान के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि विचारों की स्वतंत्रता को दबाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।