फ्रांस: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीन दिवसीय फ्रांस यात्रा के अंतिम चरण में 11 फरवरी 2025 को फ्रांसीसी शहर मार्सेली पहुंचे। इस अवसर पर उन्होंने मार्सेली में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर से जुड़ी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना को याद किया। पीएम मोदी ने वीर सावरकर के साहसिक प्रयासों को श्रद्धांजलि अर्पित की और इस शहर के महत्व पर प्रकाश डाला।

मार्सिले और वीर सावरकर का इतिहास
मार्सिली को लेकर पीएम मोदी ने कहा, “मार्सेली का भारत की आजादी में खास महत्व है। वीर सावरकर ने यहीं से साहसिक पलायन का प्रयास किया था।” प्रधानमंत्री ने आगे कहा, “मैं मार्सेली के लोगों और उस दौरान के फ्रांसीसी आंदोलकारियों का धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने वीर सावरकर को ब्रिटिश अधिकारियों के हाथों में न सौंपने का निर्णय लिया था। वीर सावरकर आज भी हमारी पीढ़ियों को प्रेरित करते हैं।”
1910 में सावरकर का साहसिक पलायन
मार्सिली और वीर सावरकर का संबंध 1910 में जुड़ा जब सावरकर को ब्रिटिश अधिकारियों ने एक राजनैतिक कैदी के रूप में लंदन से भारत वापस भेजने के लिए एस एस मोरिया जहाज में सवार किया। 8 जुलाई 1910 को यह जहाज मार्सेली के बंदरगाह पर पहुंचा, जहां सावरकर ने अपने भागने का प्रयास किया। उन्होंने जहाज से एक पोर्टहोल के जरिए बाहर निकलने की कोशिश की और तट पर तैरने लगे। हालांकि, इससे पहले कि वह भागने में सफल होते, उन्हें फ्रांसीसी अधिकारियों ने पकड़ लिया और अंग्रेजों के हवाले कर दिया।

ब्रिटेन और फ्रांस के बीच कूटनीतिक तनाव
सावरकर के भागने के प्रयास से ब्रिटेन और फ्रांस के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ गया था। फ्रांस का आरोप था कि सावरकर को ब्रिटिश अधिकारियों को सौंपने से अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हुआ था। इस मामले में फ्रांसीसी सरकार ने कहा था कि उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
न्यायिक प्रक्रिया और मध्यस्थता
साल 1911 में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने इस मामले में अपना निर्णय सुनाया, जिसमें कहा गया कि सावरकर की गिरफ्तारी में अनियमितताएं थीं, लेकिन ब्रिटेन को सावरकर को वापस करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता था। फ्रांसीसी सरकार ने इस मामले में यह तर्क भी दिया कि सावरकर को ब्रिटिश अधिकारियों को सौंपने से अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हुआ था, जो उनके साथ गलत था।