अजमेर, राजस्थान: अजमेर स्थित ऐतिहासिक ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। उप महापौर नीरज जैन ने दावा किया है कि मस्जिद के स्थान पर पहले एक भव्य हिंदू मंदिर और संस्कृत पाठशाला थी। उन्होंने राज्य सरकार से इस स्थल पर नमाज पढ़ने पर रोक लगाने और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से विस्तृत जांच कराने की मांग की है।
मंदिर और संस्कृत पाठशाला का दावा
नीरज जैन ने कहा कि ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद में आज भी हिंदू धर्म से जुड़े चिह्न और मूर्तियां स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। खंभों में देवी-देवताओं की मूर्तियां, स्वास्तिक और कमल के चिह्न, और संस्कृत में लिखे श्लोक इस बात का प्रमाण देते हैं कि यह मस्जिद किसी समय एक मंदिर और संस्कृत पाठशाला थी।
हरबिलास सारदा की किताब का हवाला
नीरज जैन ने अपने दावे के समर्थन में हरबिलास सारदा द्वारा वर्ष 1911 में लिखी गई किताब अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव का हवाला दिया। इस किताब में ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ पर एक पूरा अध्याय है, जिसमें कहा गया है कि इसे ढाई दिन में नहीं बनाया गया, बल्कि कई वर्षों में इसे मस्जिद में परिवर्तित किया गया। सारदा के अनुसार, इस संरचना का निर्माण वर्ष 1153 में सम्राट वीसलदेव द्वारा एक पाठशाला और सरस्वती मंदिर के रूप में किया गया था।
मोहम्मद गौरी का हमला और मस्जिद का निर्माण
1192 में मोहम्मद गौरी के आदेश पर अफगानों ने अजमेर पर हमला किया और इस इमारत को नुकसान पहुंचाया। बाद में 1199 में दिल्ली सल्तनत के पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे मस्जिद में बदल दिया। एएसआई के अनुसार, 1213 में सुल्तान इल्तुतमिश ने इस संरचना में और बदलाव करते हुए घुमावदार मेहराब और छेद वाली दीवारें बनवाईं।
एएसआई की वेबसाइट पर क्या है जानकारी?
एएसआई की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुवाल-उल-इस्लाम मस्जिद के समकालीन है। हालांकि, इसके परिसर में मौजूद मूर्तियां और वास्तुशिल्प कलाकृतियां इस बात की ओर इशारा करती हैं कि यहां 11वीं-12वीं शताब्दी में एक भव्य हिंदू मंदिर का अस्तित्व था।
विवाद और जांच की मांग
नीरज जैन ने राज्य सरकार से अपील की है कि वह इस ऐतिहासिक स्थल की जांच के लिए एएसआई को निर्देश दे और तत्काल प्रभाव से यहां नमाज पढ़ने पर रोक लगाए। उनका कहना है कि भारत की प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है और इस स्थल की ऐतिहासिक सच्चाई सामने आनी चाहिए।