जयपुर: राजस्थान सरकार प्रदेश के सभी नगरीय निकायों के चुनाव एक साथ इसी वर्ष नवंबर–दिसंबर माह में कराने की योजना पर गंभीरता से काम कर रही है। स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने हाल ही में यह संकेत दिए कि राज्य में ‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ मॉडल के तहत नगरीय निकायों में एक समान समय पर चुनाव कराने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। हालांकि, इस प्रक्रिया में कुछ कानूनी और प्रशासनिक अड़चनों के चलते सरकार नए विकल्पों पर भी विचार कर रही है।
प्रदेश में वर्तमान में 91 नगरीय निकाय ऐसे हैं जिनका कार्यकाल आगामी वर्ष की शुरुआत यानी जनवरी–फरवरी 2026 में समाप्त होगा। ऐसे में सरकार को इन्हें समय से पहले भंग करना आसान नहीं है क्योंकि यह न केवल विधिक रूप से जटिल है बल्कि राजनीतिक रूप से भी विरोध का कारण बन सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने यह विचार किया है कि इन निकायों के चुनाव निर्धारित समय यानी नवंबर–दिसंबर में तो करा दिए जाएं, लेकिन पुराने बोर्ड के कार्यकाल की समाप्ति के बाद ही नए बोर्ड प्रभावी किए जाएं। इस दिशा में आवश्यक होमवर्क प्रारंभ कर दिया गया है।
मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने बताया कि चुनावों के आयोजन की तैयारियाँ लगभग अंतिम चरण में हैं। सीमांकन कार्य जून तक पूरा करने और मतदाता सूची अक्टूबर तक अद्यतन करने की योजना बनाई गई है। इसके बाद नवंबर से दिसंबर के मध्य तक चुनाव संपन्न कराने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सभी चुनाव एक ही दिन नहीं होंगे, बल्कि आवश्यकतानुसार इन्हें दो या तीन चरणों में भी संपन्न कराया जा सकता है।
राज्य सरकार इस प्रयास को एक बड़ी चुनावी एवं प्रशासनिक पहल मान रही है, जिससे शासन व्यवस्था को अधिक पारदर्शी, समानांतर और समन्वित बनाया जा सके। मंत्री के अनुसार, इस मॉडल से चुनावी प्रक्रिया में व्याप्त असमानताओं को दूर करने और विकास योजनाओं में निरंतरता बनाए रखने में मदद मिलेगी।
हालांकि, यह भी एक वास्तविकता है कि मौजूदा 91 निकायों के कार्यकाल खत्म होने से पहले चुनाव कराना कानूनी दृष्टि से संवेदनशील हो सकता है, क्योंकि नियमानुसार बोर्ड का कार्यकाल खत्म होने के 6 महीने पहले भंग करना स्वाभाविक प्रक्रिया नहीं मानी जाती। इसी कारण, सरकार मौजूदा बोर्ड को बरकरार रखते हुए चुनाव प्रक्रिया पूरी करने और नए बोर्ड को कार्यकाल समाप्ति के साथ ही लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
इस निर्णय से प्रदेश में प्रशासनिक गतिविधियों और शहरी विकास योजनाओं को गति मिलेगी। साथ ही यह कदम चुनाव आयोग और प्रशासनिक मशीनरी की दक्षता को भी दर्शाएगा। राज्य सरकार का यह प्रयास इस ओर भी संकेत देता है कि भविष्य में एक साथ चुनाव कराने की दिशा में यह प्रयोग आधार बन सकता है।
राज्य के नगरीय निकायों में इस निर्णय को लेकर सक्रियता बढ़ गई है, वहीं संभावित उम्मीदवारों और राजनैतिक दलों ने भी अपनी तैयारियाँ तेज कर दी हैं। आगामी महीनों में इस प्रक्रिया को लेकर अधिक स्पष्टता आने की संभावना है, जिसके बाद निर्वाचन आयोग द्वारा कार्यक्रम की आधिकारिक घोषणा की जाएगी।
यह प्रस्ताव न केवल चुनावी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह शासन व्यवस्था को एकरूपता देने वाला एक प्रयोग भी साबित हो सकता है, जिसकी सफलता पर भविष्य की नीतियों का निर्धारण किया जा सकता है।