चिड़ावा, 11 जुलाई: 15 अगस्त को देश आजादी की 78वीं वर्षगांठ का जश्न मनाएगा। सरकार इस मौके पर अखबारों में खुद की वाहवाही के फुल पेज विज्ञापन छपवाएगी और जनता के लिए घोषित योजनाओं का ढिंढोरा भी पीटेगी। लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाये जाने के कितने भी आंकड़े जारी किए जाएं, मगर हकीकत यही है कि बीते 78 वर्षों में भी राजनीति के फलक पर आती-जाती सरकारें लोगों की परेशानियों के लिए उन्हें स्थाई समाधान उपलब्ध नहीं करवा पाई हैं।
सरकारी महकमों में कमोबेश सभी में बदहाली का आलम गाहे-बगाहे सामने आता रहता है, मगर यहां बात आज राज्य के शिक्षा विभाग की हो रही है। रिमोट एरिया में सरकारी स्कूलों के क्या हालात हैं, इससे सभी वाकिफ हैं। स्कूलों में स्टाफ की अधिकांश ऊर्जा विकास और सुविधाएं जुटाने के लिए भामाशाहों की मान मनौव्वल में और बाकी ऊर्जा पदस्थापन व स्थानांतरण के लिए नेताओं की चरण वन्दना में खर्च हो जा रही है। इसके बाद जो रही-सही ऊर्जा बचती है, उससे कहीं शैक्षणिक कार्य करने की वे कोशिश करते हैं, तो स्कूलों की बदहाली मुंह बाए सामने आ खड़ी होती है। बिना किसी सुविधा के जीर्ण-शीर्ण भवन में हमारे नौनिहाल शिक्षा अर्जित करने जाते हैं, और यकीन मानिए सरकार चाहे कोई भी हो, गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर इसके लिए अपनी पीठ थपथपाना कभी नहीं भूलती।
चिड़ावा, झुंझुनू जिले का सबसे बड़ा उपखण्ड मुख्यालय है। प्रशासनिक और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की पूरी फौज यहां तैनात है। इसके बावजूद उपखण्ड मुख्यालय के ही एक उच्च प्राथमिक विद्यालय की बदहाली किसी को भी चौंका सकती है। डालमियो की ढाणी में स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय भवन की कमी से जूझ रहा है। जो कमरे स्कूल में हैं, वे अपर्याप्त हैं और उनमें भी कुछ तो इतने जर्जर हो चुके हैं कि यहां बच्चे और शिक्षक अपनी जान का जोखिम लेकर ही पढ़ने-पढ़ाने का काम कर पाते हैं। मानसून में जब सब अच्छी बारिश की दुआ करते हैं, तब यहां स्टाफ और विद्यार्थी बारिश बिल्कुल न हो यही कामना करते हैं।
दरअसल यह विद्यालय जमीनी स्तर से करीब पांच फुट नीचा है। मानसून में हल्की सी बारिश से ही स्कूल में जल भराव हो जाता है। जल भराव के कारण नीचे बने कमरे में अध्ययन प्रभावित होता है। कमरों की दीवारों में दरार स्पष्ट देखी जा सकती है और छत भी बेतहाशा टपकती है। स्कूल के ही एक कोने में बने शौचालय तक जाने के दौरान भी बच्चों व स्टाफ को घुटनों तक पानी के बीच से गुजरना पड़ता है। ऐसे में हर समय हादसे की आशंका बनी रहती है। रसोईघर भी काफी नीचे है, जिससे यहां मिड डे मील का काम भी बारिश में बहुत प्रभावित होता है।
भवन और अन्य सुविधाओं के लिए जूझते इस स्कूल में आलम ये है कि एक ही कक्षा में 3 अलग-अलग कक्षाएं संचालित करनी पड़ रही हैं। इस तरह अध्ययन और अध्यापन दोनों काम प्रभावित हो रहे हैं। स्कूल प्रशासन ने इस बार भी शिक्षा विभाग को प्रस्ताव बनाकर भेजा है, और वे आशा करते हैं कि इस बार उनकी मांग सुनी जाएगी और समस्या का शिक्षा विभाग समाधान करेगा।
बहरहाल यह स्कूल यहां के उन अधिकारियों व नेताओं को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त है, जो अपनी-अपनी पार्टी के कार्यकाल में 5 वर्ष तक महज राजनीतिक घोषणाओं की जुगाली करते रहते हैं। इस विद्यालय के बच्चे अधिकारियों व नेताओं से पूछना चाहते हैं कि क्यों वे इस स्कूल की सूरत बदल पाने लायक कोई प्रयास नहीं करते। बच्चों की नजरों में सवाल हैं कि जब जमीनी स्तर पर हालात बदले ही नहीं हैं, तो क्यों एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने और खुद की पीठ थपथपाने का यह सिलसिला अनवरत जारी है। उम्मीद है कोई अधिकारी या नेता तो ऐसा होगा, जो अपने जिन्दा जमीर की सुनेगा और इन बच्चों के स्कूल की दशा और दिशा सुधारने के लिए पहल करेगा।