Sunday, July 27, 2025
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ISRO की 101वीं लॉन्चिंग में तकनीकी गड़बड़ी, ईओएस-09 मिशन असफल, निगरानी उपग्रह का प्रक्षेपण अधूरा

नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को अपने 101वें मिशन में बड़ा झटका लगा। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV-C61 रॉकेट के ज़रिए सुबह 5:59 बजे EOS-09 अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट को लॉन्च किया गया। लेकिन कुछ ही समय बाद यह मिशन विफल घोषित कर दिया गया।

इसरो प्रमुख वी. नारायणन ने आधिकारिक बयान में बताया कि मिशन के पहले दो चरण सामान्य रूप से पूरे हुए, लेकिन तीसरे चरण में तकनीकी खामी के चलते सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा,

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“आज हमने PSLV-C61 का प्रक्षेपण किया। पहले दो चरणों में यान का प्रदर्शन संतोषजनक रहा, लेकिन तीसरे चरण में तकनीकी खामी सामने आई है। हम संपूर्ण डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं और जल्द ही फिर से लौटेंगे।”

पाकिस्तान पर नजर रखने वाला था EOS-09

माना जा रहा है कि EOS-09 उपग्रह का मुख्य उद्देश्य भारत-पाकिस्तान सीमा पर निगरानी करना था। हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद भारत की सुरक्षा एजेंसियां किसी भी नापाक हरकत पर पैनी निगाह बनाए हुए हैं।

EOS-09 को विशेष रूप से घने बादलों, धुंध और अंधकार जैसी परिस्थितियों में भी स्पष्ट हाई-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरें लेने की क्षमता के साथ विकसित किया गया था। यह उपग्रह 24 घंटे सतत निगरानी के लिए उपयुक्त था।

PSLV-C61 रॉकेट का सफर अधूरा रह गया

PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) भारत के सबसे विश्वसनीय प्रक्षेपण यानों में से एक है, जिसकी सफलता दर 95% से अधिक रही है। PSLV-C61 रॉकेट चार चरणों वाला यान है। इस मिशन में EOS-09 के साथ इसे ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया जाना था, लेकिन तीसरे चरण में आई तकनीकी गड़बड़ी के चलते यह संभव नहीं हो सका।

इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा अब मिशन लॉग और उड़ान डेटा का बारीकी से विश्लेषण किया जा रहा है, ताकि विफलता के कारणों का पता लगाया जा सके और भविष्य में ऐसी त्रुटियों से बचा जा सके।

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दृश्य सामग्री

1. PSLV-C61 की लॉन्चिंग का चित्र:
2. EOS-09 का अनुमानित ऑर्बिटल पथ:
3. इसरो चीफ वी नारायणन की प्रेस कॉन्फ्रेंस:

आगे की रणनीति

इसरो के मुताबिक, EOS-09 की विफलता के बावजूद भविष्य के कई उपग्रह मिशन पहले से ही तैयार हैं। संगठन जल्द ही आगामी मिशन की घोषणा कर सकता है। वहीं, इस मिशन की विफलता के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि PSLV तकनीक पर विश्वास अब भी बरकरार है।

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