नई दिल्ली, 01 जुलाई 2024: दिल्ली की साकेत कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को 23 साल पुराने आपराधिक मानहानि मामले में पांच महीने की कैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने इसके साथ ही पाटकर पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। हालांकि, अदालत ने इस सजा को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया है ताकि पाटकर आदेश के खिलाफ अपील दायर कर सकें।
मामला क्या है?
यह मामला 2003 का है जब मेधा पाटकर ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के तहत सक्रिय थीं और वीके सक्सेना, जो वर्तमान में दिल्ली के उपराज्यपाल हैं, नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज में एक्टिव थे। उस वक्त पाटकर ने वीके सक्सेना पर हवाला लेनदेन में संलिप्तता का आरोप लगाया था। सक्सेना ने इसे अपमानजनक मानते हुए मेधा पाटकर के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज किया था।
अदालत का फैसला
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने अपने आदेश में कहा कि मेधा पाटकर ने वीके सक्सेना पर लगाए गए आरोप न केवल अपमानजनक थे, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए गढ़े गए थे। अदालत ने इस मामले में मिले सबूतों और तथ्य पर विचार करने के बाद पाटकर को दोषी करार दिया।
जुर्माना और सजा
साकेत कोर्ट ने मेधा पाटकर को पांच महीने की कैद की सजा सुनाई है और उन पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट ने यह भी निर्णय लिया कि सजा को एक महीने के लिए निलंबित किया जाएगा ताकि पाटकर इस आदेश के खिलाफ अपील कर सकें।
पिछले मामले
यह मामला दो दशकों से अधिक समय तक चला और इस दौरान पाटकर और सक्सेना के बीच कई बार कानूनी विवाद हुए। मेधा पाटकर ने अपने और ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के खिलाफ दिए गए विज्ञापन को लेकर सक्सेना पर मानहानि का केस किया था, जबकि सक्सेना ने अपमानजनक बयानबाजी के लिए पाटकर पर दो मानहानि के केस दर्ज कराए थे।