नई दिल्ली: देश में वक्फ संपत्तियों को लेकर उत्पन्न हो रहे विवादों के बीच सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। इस सुनवाई की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की दो सदस्यीय पीठ कर रही है। पीठ यह विचार कर रही है कि जब तक अंतिम निर्णय नहीं आता, क्या तब तक संशोधित कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जानी चाहिए।

मुस्लिम पक्ष और चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता आमने-सामने
मुस्लिम पक्ष की ओर से दिग्गज वकीलों की एक टीम कोर्ट में उपस्थित है जिसमें कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन, सलमान खुर्शीद और हुजैफा अहमदी शामिल हैं।
वहीं संशोधित वक्फ कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से एजाज मकबूल नोडल वकील हैं।
संशोधन का समर्थन करने वालों की ओर से राकेश द्विवेदी, मनिंदर सिंह, रंजीत कुमार, रविंद्र श्रीवास्तव और गोपाल शंकर नारायण संभावित वकील हैं, जबकि विष्णु शंकर जैन को नोडल वकील नियुक्त किया गया है।
कपिल सिब्बल की दलीलें: संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन
कपिल सिब्बल ने अदालत के समक्ष धारा 3 के प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए कहा कि “अगर कोई अतिक्रमण का विवाद उत्पन्न करता है तो संपत्ति की वक्फ मान्यता स्वतः समाप्त हो जाती है, जो अनुचित है।”
उन्होंने कहा कि “यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि “अगर कोई ग्राम पंचायत या निजी व्यक्ति भी शिकायत दर्ज करा देता है तो संपत्ति की वक्फ मान्यता खत्म मानी जाएगी, क्योंकि निर्णय का अधिकार सरकारी अधिकारी के पास है जो स्वयं इस मामले में पक्षकार हो सकता है।”
सीजेआई और सिब्बल के बीच महत्वपूर्ण संवाद
- सीजेआई गवई ने कहा – “आपके अनुसार अगर कोई विवाद उत्पन्न करता है तो संपत्ति की वक्फ मान्यता समाप्त हो जाती है?”
सिब्बल – “हां, और यह किसी भी स्थानीय प्राधिकरण द्वारा किया जा सकता है।” - सीजेआई – “क्या इस कानून से आपका धार्मिक पालन का अधिकार समाप्त हो जाता है?”
सिब्बल – “अगर संपत्ति की वक्फ मान्यता खत्म हो जाती है तो वहां धार्मिक गतिविधियों का पालन संभव नहीं रहेगा। यह अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है।”

पुरातत्व संरक्षण बनाम धार्मिक स्वतंत्रता पर बहस
मुख्य न्यायाधीश ने उदाहरण देते हुए कहा कि “खजुराहो का एक मंदिर एएसआई के संरक्षण में है, फिर भी लोग वहां पूजा करते हैं।”
इस पर सिब्बल ने तर्क दिया कि “नया कानून कहता है कि अगर संपत्ति एएसआई संरक्षित है, तो वह वक्फ नहीं हो सकती, जो धार्मिक अधिकारों का हनन है।”
वक्फ पंजीकरण का इतिहास और अनिवार्यता पर सवाल
सिब्बल ने बताया कि 1954 के बाद सभी वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य था, हालांकि पहले ऐसा स्पष्ट नहीं था।
उन्होंने कहा कि – “पुराने कानून में सिर्फ इतना कहा गया कि जो मुत्तवल्ली पंजीकरण नहीं करता, वह अपने अधिकार खो देगा, लेकिन अन्य कोई सजा नहीं थी।”
इस पर अदालत ने टिप्पणी की कि “‘Shall’ शब्द के प्रयोग से यह सिद्ध नहीं होता कि पंजीकरण अनिवार्य था। यदि पालन न करने पर दंड का प्रावधान नहीं है, तो अनिवार्यता का तर्क कमज़ोर पड़ता है।”
उपयोगकर्ता आधारित वक्फ और ऐतिहासिक संदर्भ
सिब्बल ने तर्क दिया कि – “2025 का संशोधित अधिनियम पुरानी अवधारणाओं से भिन्न है। इसमें उपयोगकर्ता द्वारा बनाए गए वक्फ और समर्पण की अलग-अलग धाराएं हैं। बाबरी मस्जिद प्रकरण में भी उपयोगकर्ता आधारित वक्फ की मान्यता दी गई थी।”
उन्होंने यह भी पूछा कि – “ऐसे ऐतिहासिक वक्फ जो सदियों से अस्तित्व में हैं, अगर उन्हें नए कानून के तहत वक्फ नहीं माना जाएगा, तो उनका क्या होगा?”