श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर: आजादी के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में संविधान दिवस का आयोजन किया गया। इस ऐतिहासिक दिन को मनाने के लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने विशेष तैयारी की थी। श्रीनगर में आयोजित इस समारोह का नेतृत्व उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने किया। इस दौरान संविधान की प्रस्तावना पढ़ने का आयोजन किया गया, जिसमें कई मंत्री और अधिकारी उपस्थित रहे।
सरकार ने सोमवार को ही इस समारोह के भव्य आयोजन के निर्देश दिए थे। यह आयोजन 1947 में जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बाद पहली बार हो रहा है।
उमर अब्दुल्ला की अनुपस्थिति, लेकिन मंत्रियों ने संभाला मोर्चा
हालांकि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला खुद इस समारोह में शामिल नहीं हो सके क्योंकि वे उमराह के लिए सऊदी अरब गए हुए हैं। लेकिन उनकी सरकार के मंत्रियों ने संविधान की प्रस्तावना पढ़ने की प्रक्रिया में हिस्सा लिया और भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा जताई।
जम्मू-कश्मीर के पहले सीएम जिन्होंने ली संविधान की शपथ
16 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में जीत के बाद उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इस दौरान उन्होंने भारतीय संविधान की निष्ठा की शपथ ली, जिससे वह ऐसा करने वाले जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बने। शपथ ग्रहण समारोह में उनके साथ उनकी सरकार के मंत्रियों ने भी संविधान की शपथ ली थी।
अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर का बदलता इतिहास
2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया गया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान और झंडा भी रद्द कर दिया गया। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया।
इसके पहले, जम्मू-कश्मीर में अपना अलग संविधान और ध्वज लागू था। वहां के मुख्यमंत्री को ‘प्रधानमंत्री’ और राज्य प्रमुख को ‘सदर-ए-रियासत’ के रूप में संबोधित किया जाता था। 1965 में इन पदों को मुख्यमंत्री और राज्यपाल में परिवर्तित कर दिया गया था।
2019 में हुए बदलाव के बाद प्रदेश में पहली बार 18 सितंबर से 1 अक्टूबर के बीच विधानसभा चुनाव कराए गए। इन चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन को बहुमत मिला और उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद संभाला।