पाकिस्तान: सिंधु जल संधि को लेकर भारत की सक्रियता और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की हो रही किरकिरी के बाद अब पाकिस्तानी सेना बौखला गई है। पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर ने एक बार फिर भारत के खिलाफ तीखा बयान देते हुए कहा है कि पाकिस्तान पानी के अधिकार से कोई समझौता नहीं करेगा।
पाकिस्तान के प्रमुख समाचार पत्र डॉन ने सेना के मीडिया विंग इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) के हवाले से बताया कि मुनीर ने कहा —
“पानी पाकिस्तान की रेडलाइन है। हम 24 करोड़ पाकिस्तान इस बुनियादी हक से कभी समझौता नहीं करेंगे। पाकिस्तान कभी हिंदुस्तान के आगे नहीं झुकेगा।”

बलूच विद्रोहियों को बताया भारत का प्रॉक्सी
जनरल मुनीर ने बलूच विद्रोहियों पर भी निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वे भारत की शह पर पाकिस्तान को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं।
उन्होंने कहा —
“बलूचिस्तान में एक्टिव टेररिस्ट भारत के प्रॉक्सी हैं। ये लोग बलूच नहीं हैं और इनका कोई नाता बलूचिस्तान से नहीं है।”
यह बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान के अंदरूनी हालात खासे तनावपूर्ण हैं और बलूच आंदोलन लगातार तेज़ होता जा रहा है। पाक सेना खुद अपने ही प्रांतों में शांति बनाए रखने में नाकाम साबित हो रही है।
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई एक ऐतिहासिक समझौता है, जो दोनों देशों के जल बंटवारे को लेकर हुआ था।
- 1947 में बंटवारे के समय सिंधु नदी प्रणाली भारत से पाकिस्तान होकर गुजरती थी।
- 1948 में भारत ने कुछ समय के लिए पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति रोक दी थी, जिसके बाद पाकिस्तान ने यह मामला संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचाया।
- विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए।

संधि के अनुसार:
- भारत को रवि, ब्यास और सतलुज (पूर्वी नदियों) पर प्राथमिक नियंत्रण मिला।
- पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब (पश्चिमी नदियों) पर प्राथमिक अधिकार दिया गया।
- भारत इन पश्चिमी नदियों का सीमित उपयोग कर सकता है जैसे – सिंचाई, हाइड्रोपावर, लेकिन ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकता जिससे पानी की आपूर्ति पाकिस्तान को बाधित हो।
भारत का बदलता रुख
हाल के वर्षों में पाकिस्तान द्वारा लगातार सीमा पार आतंकवाद और भारत विरोधी गतिविधियों के चलते भारत में सिंधु जल संधि की समीक्षा की मांग तेज हुई है। भारत ने कई बार यह संकेत दिया है कि अब वह अपनी हिस्से की नदियों का अधिकतम उपयोग करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान भी इस ओर इशारा कर चुके हैं कि यदि पाकिस्तान द्विपक्षीय संबंधों में शांति और सहयोग नहीं दिखाता, तो जल समझौतों पर पुनर्विचार संभव है।