नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना (IAF) ने अपने प्रमुख लड़ाकू विमान सुखोई-30 MKI को नई तकनीकों से लैस करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। चार दशकों से भारतीय सीमाओं की रक्षा कर रहे इन विमानों को और अधिक अत्याधुनिक बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाएगा। आईआईटी-बॉम्बे के सहयोग से चलने वाली इस परियोजना के तहत पहले चरण में 84 सुखोई विमानों का अपग्रेडेशन किया जाएगा। यह जानकारी वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारी ने दी, जिन्होंने बताया कि इस परियोजना पर वित्तीय स्वीकृति के पहलुओं पर चर्चा की जा रही है।
AI आधारित रखरखाव और प्रबंधन में आईआईटी-बॉम्बे का सहयोग
वायुसेना का यह पायलट प्रोजेक्ट लगभग पांच से सात साल की अवधि में पूरा किया जाना प्रस्तावित है। इस परियोजना में AI आधारित इंजन, विमानों के रखरखाव, पुर्जों के प्रबंधन और इन्वेंट्री मैनेजमेंट को प्रमुखता दी जाएगी। एयर ऑफिसर मेंटेनेंस के मार्शल सी.आर. मोहन ने अपनी सेवानिवृत्ति से पूर्व जानकारी दी कि वित्तीय पहलुओं पर कार्य चल रहा है, और एक बार मंजूरी मिलने पर अपग्रेडेशन कार्य तुरंत शुरू किया जा सकेगा।
देसी तकनीक के साथ स्वदेशीकरण पर जोर
सुखोई-30 MKI को आधुनिक राफेल विमानों की तर्ज पर अपग्रेड करने की इस योजना में 78% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया जाएगा। पूर्व वायुसेना प्रमुख वी.आर. चौधरी ने पहले ही घोषणा की थी कि इन 84 विमानों में कुल 51 प्रणालियों का अपग्रेडेशन होगा, जिसमें स्वदेशीकरण पर विशेष जोर दिया गया है। HAL (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) द्वारा इन अपग्रेडेड प्रणालियों का अधिकांश कार्य किया जाएगा, जिससे वायुसेना के संसाधनों को बेहतर तरीके से संगठित किया जा सकेगा।
रूस की साझेदारी, लेकिन अधिकांश तकनीक स्वदेशी
रूस इस परियोजना में भी सहयोग कर रहा है, खासकर फ्लाई-बाय-वायर सिस्टम के अपग्रेडेशन में। वायुसेना के अधिकारी ने बताया कि रडार और एवियोनिक्स सिस्टम जैसे अपग्रेडेशन स्वदेशी तरीके से किए जाएंगे। हालांकि, विमान की शेष जीवन अवधि के आधार पर अपग्रेड किए जाने वाले विमानों की संख्या तय की जाएगी, लेकिन जिन विमानों का कार्यकाल सीमित है, उनके लिए सीमित अपग्रेडेशन ही किया जाएगा।
2055 तक सेवा में रहेगा Su-30 MKI बेड़ा
भारतीय वायुसेना के पास वर्तमान में 259 Su-30 MKI का बेड़ा है, जो 2055 तक सेवा में रह सकता है। यह अपग्रेडेशन भारत की रक्षा क्षमताओं में वृद्धि करने के साथ-साथ विदेशी तकनीक पर निर्भरता को कम करेगा।