मुंबई: समाजवादी पार्टी ने महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन से बाहर होने का निर्णय लिया है। यह फैसला शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे के करीबी सहयोगी द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस पर किए गए एक पोस्ट और एक समाचार पत्र में छपे विवादास्पद विज्ञापन के बाद लिया गया है। सपा के इस कदम से महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति में नई हलचल मच गई है।
क्या है विवाद की वजह?
महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अबू आजमी ने शिवसेना (यूबीटी) पर आरोप लगाते हुए कहा, “शिवसेना (यूबीटी) द्वारा एक समाचार पत्र में एक विज्ञापन प्रकाशित किया गया, जिसमें बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने वालों को बधाई दी गई थी। साथ ही, उद्धव ठाकरे के करीबी सहयोगी और एमएलसी मिलिंद नार्वेकर ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर बाबरी विध्वंस की सराहना करते हुए एक पोस्ट साझा की। इसमें शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे का बयान भी शामिल था—‘मुझे उन लोगों पर गर्व है जिन्होंने ऐसा किया।’”
अबू आजमी का बयान
अबू आजमी ने स्पष्ट किया, “शिवसेना (यूबीटी) द्वारा इस तरह के बयान और विज्ञापन पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं। यह भाजपा की राजनीति से अलग नहीं है। यदि एमवीए में इस प्रकार की भाषा का प्रयोग होता है, तो हमें उनके साथ बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। इस निर्णय को लेकर मैंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी चर्चा की है।”
मिलिंद नार्वेकर की पोस्ट और विवाद
मिलिंद नार्वेकर ने बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित एक तस्वीर साझा की थी, जिसमें उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और उनकी तस्वीरें थीं। पोस्ट में बाल ठाकरे के बयान को भी प्रमुखता से दिखाया गया था। यह पोस्ट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुई, जिसके बाद एमवीए गठबंधन में तनाव बढ़ गया।
एमवीए की मौजूदा स्थिति
हाल ही में संपन्न हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में एमवीए को करारी हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने 288 में से 230 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसमें भाजपा ने 132, शिवसेना ने 57 और एनसीपी ने 41 सीटें जीतीं। इसके मुकाबले एमवीए केवल 46 सीटें हासिल कर सकी, जिसमें शिवसेना (यूबीटी) को 20, कांग्रेस को 16 और एनसीपी (शरद पवार गुट) को शून्य सीटें मिलीं।
सपा का फैसला और असर
महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के पास दो विधायक हैं। हालांकि उनकी संख्या कम है, लेकिन एमवीए से अलग होने का यह फैसला गठबंधन की एकजुटता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। सपा का यह कदम विपक्षी दलों के लिए एक कड़ी चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है कि गठबंधन के भीतर किसी भी प्रकार के विवादास्पद बयान या हरकत को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।