ढाका, बांग्लादेश: बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश के अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस पर अल्पसंख्यकों के कथित उत्पीड़न को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। न्यूयॉर्क में आयोजित एक कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करते हुए, उन्होंने यूनुस को “नरसंहार का मास्टरमाइंड” बताया और उनके नेतृत्व में हिंदू, बौद्ध, और ईसाई अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचारों पर कड़ी आलोचना की।
हमले और साजिश का आरोप
हसीना ने कहा कि पांच अगस्त को उनकी और उनकी बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश ठीक उसी तरह रची गई थी जैसे 1975 में उनके पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान की हत्या की गई थी। उन्होंने दावा किया, “हथियारबंद प्रदर्शनकारियों को मेरे आधिकारिक आवास गणभवन की ओर भेजा गया था। यह महज 25-30 मिनट का मामला था, लेकिन सुरक्षा गार्डों ने हिंसा को टालने में अहम भूमिका निभाई।”
उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों पर अत्याचारों को रोकने में विफल रहने के कारण उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। हसीना ने यूनुस पर आरोप लगाते हुए कहा, “अल्पसंख्यकों पर हमले सुनियोजित थे। हिंदू मंदिरों, बौद्ध तीर्थस्थलों, और चर्चों को निशाना बनाया गया। जब हिंदुओं ने विरोध किया, तो इस्कॉन के एक वरिष्ठ पुजारी चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ्तार कर लिया गया।”
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में चूक
शेख हसीना ने कहा कि उनके देश में अल्पसंख्यक अब सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि यूनुस सरकार की निष्क्रियता के कारण 11 चर्चों और कई हिंदू और बौद्ध पूजास्थलों को नष्ट कर दिया गया। उन्होंने कहा, “यह केवल एक राजनीतिक षड्यंत्र नहीं, बल्कि एक नरसंहार है।”
भारत ने जताई चिंता
भारत ने भी बांग्लादेश में हो रहे अल्पसंख्यकों पर हमलों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इस्कॉन पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के मामले को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से सुलझाया जाना चाहिए।
जायसवाल ने आगे कहा, “हम उकसावे और हिंसा की घटनाओं में वृद्धि से चिंतित हैं। बांग्लादेश को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।”
राजनीतिक संकट और हसीना का पलायन
बांग्लादेश में जुलाई और अगस्त के महीनों में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए, जिसके बाद शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा। भारत में शरण लेने के बाद यह उनका पहला सार्वजनिक संबोधन था। विजय दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “जब मेरे देश में अल्पसंख्यकों और निर्दोष लोगों की निर्ममता से हत्या हो रही थी, तब मैंने फैसला किया कि मुझे देश छोड़ देना चाहिए।”