इस्लामाबाद: ऑपरेशन सिंदूर में भारत के कड़े रुख और सैन्य रणनीति के सामने विफल होने के बाद पाकिस्तान अब अमेरिका को रिझाने की कोशिश में जुट गया है। इसी रणनीति के तहत पाकिस्तान सरकार ने अमेरिका की सेंट्रल कमांड के प्रमुख माइकल कुरिल्ला को देश का सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘निशान-ए-इम्तियाज’ प्रदान किया है। यह सम्मान उन्हें इस्लामाबाद स्थित राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह के दौरान राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी द्वारा दिया गया।
जनरल माइकल कुरिल्ला वही अधिकारी हैं जिन्होंने हाल में पाकिस्तान को आतंकवाद से लड़ने वाला राष्ट्र बताया था। यही नहीं, उन्होंने पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका का मजबूत साझेदार भी करार दिया था। इस दौरान उन्होंने भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ अमेरिका के संबंधों को संतुलित बनाए रखने की बात कही थी। उनका कहना था कि अमेरिका के लिए यह कोई द्विपक्षीय चयन नहीं है कि अगर वह एक देश से संबंध बनाए तो दूसरे से नहीं रख सकता। अमेरिका दोनों देशों से मिलने वाले रणनीतिक लाभों को ध्यान में रखेगा।
इस सैन्य सम्मान के अवसर पर जनरल कुरिल्ला ने राष्ट्रपति जरदारी के साथ-साथ सेना प्रमुख असीम मुनीर से भी मुलाकात की। इन बैठकों को पाकिस्तान-अमेरिका सैन्य रिश्तों को मजबूती देने की दिशा में एक और कदम माना जा रहा है।
इस घटनाक्रम पर भारत ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट कहा कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुआ आतंकी हमला इस बात का प्रमाण है कि सीमा पार से आतंकवाद आज भी भारत के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है।
रक्षा और विदेश नीति के विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान का यह कदम अमेरिका के प्रति राजनीतिक नजदीकी और वफादारी जताने का प्रयास है ताकि वॉशिंगटन से आर्थिक और कूटनीतिक मदद हासिल की जा सके। यह प्रयास उस समय किया गया है जब पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की निगरानी में बना हुआ है। अमेरिका FATF का संस्थापक सदस्य है और उसकी नीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए पाकिस्तान की यह चापलूसी एक सुनियोजित रणनीति के तहत की गई प्रतीत होती है।