वॉशिंगटन: अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड ने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ आपराधिक जांच और कानूनी कार्रवाई की मांग की है। गबार्ड ने दावा किया है कि ओबामा ने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की वैध जीत को कमजोर करने की साजिश रची थी और इसके लिए जानबूझकर गढ़ी गई राजनीतिक जानकारी का सहारा लिया गया।
तुलसी गबार्ड ने अपने आधिकारिक ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) अकाउंट पर लिखा कि ओबामा का मकसद अमेरिकी जनता की लोकतांत्रिक इच्छा को कुचलना और ट्रंप को सत्ता से हटाना था। उन्होंने कहा कि कानून से ऊपर कोई नहीं है और इस साजिश में जो भी लोग शामिल हैं, चाहे वे कितने भी ताकतवर क्यों न हों, उनके खिलाफ निष्पक्ष और सख्त जांच होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेज अमेरिकी न्याय विभाग को सौंपे जा रहे हैं ताकि उचित आपराधिक जांच शुरू की जा सके।
राष्ट्रीय खुफिया निदेशक द्वारा जारी एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि उन्होंने ऐसे सबूत पेश किए हैं, जिनके अनुसार ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद ओबामा प्रशासन के वरिष्ठ सदस्यों ने एक रणनीतिक योजना के तहत उन्हें कमजोर करने के प्रयास किए। गबार्ड का कहना है कि ओबामा और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के वरिष्ठ सदस्य – जिनमें जॉन केरी, जॉन ब्रेनन, सुज़ैन राइस, लोरेटा लिंच, एंड्रयू मैककेब और तत्कालीन डीएनआई जेम्स क्लैपर जैसे नाम शामिल हैं – एक विशेष बैठक में शामिल हुए थे, जो 9 दिसंबर 2016 को व्हाइट हाउस में हुई थी। इस बैठक में यह तय किया गया कि रूस द्वारा चुनाव में कथित हस्तक्षेप को लेकर एक नया खुफिया आकलन तैयार किया जाएगा।
इस बैठक के बाद, क्लैपर के कार्यकारी सहायक ने इंटेलिजेंस कम्युनिटी के अन्य अधिकारियों को निर्देशित किया कि राष्ट्रपति ओबामा के कहने पर एक नया रिपोर्ट तैयार की जाए, जिसमें विस्तार से यह बताया जाए कि रूस ने चुनाव को प्रभावित करने के लिए क्या कदम उठाए। इसके लिए ओडीएनआई, सीआईए, एफबीआई, एनएसए और डीएचएस को मिलाकर एक विशेष टीम गठित की गई।
प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, उस समय इंटेलिजेंस कम्युनिटी का स्पष्ट आकलन था कि अमेरिका के चुनाव ढांचे पर किसी विदेशी ताकत ने प्रभाव नहीं डाला था। लेकिन केवल कुछ ही दिनों बाद एक नया रिपोर्ट सामने लाई गई, जिसमें इसके बिल्कुल विपरीत बातें कही गईं। गबार्ड के अनुसार, यह रिपोर्ट राजनीतिक मकसद से तैयार की गई थी, जिससे ट्रंप को बदनाम किया जा सके और उनके प्रशासन पर शक पैदा किया जाए।
गबार्ड का आरोप है कि इन फर्जी आकलनों के आधार पर ट्रंप के खिलाफ मुलर जांच शुरू की गई, दो बार महाभियोग लाया गया, उनके कई सहयोगियों की गिरफ्तारी हुई और अमेरिका तथा रूस के बीच तनाव की स्थिति और अधिक गहराई। इसके पीछे मुख्य भूमिका ओबामा प्रशासन की थी, जिसने इस रणनीति को अंजाम देने के लिए मीडिया में भी झूठी सूचनाएं लीक कीं। ‘वाशिंगटन पोस्ट’ जैसे बड़े मीडिया हाउसों ने भी इस झूठी जानकारी को प्रमुखता से प्रकाशित किया।
तुलसी गबार्ड का मानना है कि अमेरिकी लोकतंत्र की विश्वसनीयता अब इस बात पर निर्भर करती है कि क्या इस पूरे षड्यंत्र की निष्पक्ष जांच होगी और क्या दोषियों को कानून के तहत सजा मिलेगी। उन्होंने यह भी दोहराया कि यह केवल ट्रंप या किसी एक नेता का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पूरे लोकतांत्रिक ढांचे की अखंडता से जुड़ा मामला है।