Monday, November 10, 2025
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नरहड़ दरगाह का भादवा मेला 15 से: देश भर से आते हैं श्रद्धालु, 3 दिन तक चलेंगे धार्मिक रीति रिवाज, तैयारियों के लिए प्रशासन और इंतजामिया कमेटी की बैठक हुई

पिलानी, 11 अगस्त: नरहड़ स्थित कौमी एकता की मिसाल राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी दरगाह, हजरत शकरबार शाह दरगाह का सालाना भादवा मेला 15 अगस्त से शुरू होगा। तीन दिवसीय आयोजन से पहले प्रशासन और इंतजामिया कमेटी की एक बैठक आज आयोजित हुई जिसमें सफाई, पार्किंग, मेडिकल सुविधा, पुलिस तैनाती, और बेरीकेडिंग समेत अन्य व्यवस्थाओं पर विस्तार से चर्चा की गई।

दरगाह खादिम और नरहड़ दरगाह सेवा फाउंडेशन के निदेशक शाहिद पठान ने बताया कि बैठक में एसडीएम नरेश सोनी, डीएसपी विकास धींधवाल, तहसीलदार कमलदीप पूनिया, बीडीओ अनीषा बिजारनिया, सीआई रणजीत सिंह सेवदा, प्रशासनिक अधिकारी कैलाश सिंह कविया, पटवारी राहुल, विकास अधिकारी पंकज गढ़वाल तथा इंतजामिया कमेटी की ओर से सदर खलील बुडाना, सचिव करीम पीरजी के साथ पूर्व प्रधान निहाल सिंह रणवा, सुमेर सिंह रणवा, नवनीत कुमार, मुराद अली, उम्मेद गिडानिया आदि मौजूद रहे। बैठक में मौजूद प्रशासन व पुलिस के अधिकारियों ने इंतजामिया कमेटी के सदस्यों के साथ दरगाह परिसर का निरीक्षण भी किया। डीएसपी विकास धींधवाल ने दरगाह व बाहर हाई क्वालिटी के सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए कमेटी को निर्देश दिए।

मेले के दौरान प्रशासनिक स्तर पर लगातार आयोजन की समीक्षा और व्यवस्था की निगरानी की जाती है। दरगाह इंतजामिया कमेटी द्वारा दरगाह के चारों ओर सजावट और टेंट आदि की व्यवस्था की जाती है।

आपको बता दें कि नरहड़ दरगाह का भादवा मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण पक्ष की सप्तमी, अष्टमी व नवमी तिथियों पर आयोजित किया जाता है। मेले में देश भर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु नरहड़ दरगाह पहुंचते हैं।

सप्तमी पर पहले दिन आयोजन की शुरुआत महफिल-ए‑कव्वाली से होती है जिसके बाद रातभर का जागरण (रतजगा) किया जाता है। इस कार्यक्रम में चिड़ावा के दूलजी राणा परिवार द्वारा ख्याल की प्रस्तुति दी जाती है। साथ ही मुकामी एवं बाहर की कव्वाल पार्टियाँ भी हजरत हाजिब शकरबार शाह की शान में कव्वालियां पेश करते हैं। अगले दिन अष्टमी को मन्नतें पूरी होने पर दरगाह आने वाले श्रद्धालु यहां जाल के पेड़ पर धागा बांधते हैं जिसे मन्नत की तांती भी कहा जाता है। श्रद्धालु इस दौरान दरगाह में जात-जड़ूले उतारते हैं और छप्पन भोग, प्रसाद व चादर आदि चढ़ाते हैं। मेले के आखिरी दिन नवमी को क्षेत्र के जनप्रतिनिधि व अन्य प्रमुख लोग एवं प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा दरगाह में चादर चढ़ाने की रस्म अदा की जाती है जिसके बाद श्रद्धालु वापस अपने गंतव्य की ओर रवाना हो जाते हैं।

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