इजरायल/ईरान: अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को हाल ही में जो जानकारी प्राप्त हुई है, उससे यह संकेत मिला है कि इजरायल ईरान के परमाणु ठिकानों पर संभावित सैन्य कार्रवाई की योजना बना रहा है।
CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, इस हमले को लेकर अंतिम निर्णय अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन अमेरिकी सुरक्षा प्रतिष्ठान इस सूचना को लेकर सतर्क हो गए हैं।
नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल ने इस रिपोर्ट पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जबकि वॉशिंगटन स्थित इजरायली दूतावास और इजरायली प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की है।

परमाणु समझौते की विफलता से बढ़ सकती है हमले की संभावना
CNN को जानकारी देने वाले एक खुफिया सूत्र के अनुसार, यदि अमेरिका और ईरान के बीच ऐसा कोई समझौता नहीं होता जिसमें ईरान अपने यूरेनियम भंडार को पूरी तरह समाप्त करता है, तो इजरायल द्वारा हमले की संभावना और भी प्रबल हो जाती है।
इस सूत्र ने यह भी कहा कि हाल के महीनों में इजरायल द्वारा ईरानी परमाणु प्रतिष्ठानों की गतिविधियों पर विशेष निगरानी रखी जा रही है।
ट्रंप प्रशासन की कूटनीतिक रणनीति
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार की ओर से एक बार फिर ईरान के साथ परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत को प्राथमिकता दी जा रही है। ट्रंप ने हाल ही में न्यूयॉर्क पोस्ट को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा कि वह “एक सत्यापित परमाणु शांति समझौते” के पक्षधर हैं, न कि युद्ध के।
ट्रंप ने कहा,
“हम ऐसी कूटनीति चाहते हैं जिससे स्थायी समाधान निकले, न कि ऐसा हमला जो पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर दे।”
हालांकि, खुफिया जानकारी से यह संकेत भी मिलते हैं कि इजरायली नीति ट्रंप प्रशासन की इस कूटनीतिक सोच से भिन्न हो सकती है।

क्षेत्रीय और वैश्विक असर की आशंका
यदि इजरायल ने यह सैन्य अभियान शुरू किया, तो इससे पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र में तनाव और हिंसा की नई लहर चल सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान की ओर से प्रतिरोध के तौर पर सीधा या अप्रत्यक्ष हमला किया जा सकता है, जिससे लेबनान, सीरिया, और यमन में इजरायली हितों पर असर पड़ेगा।
विशेषज्ञों की राय
डॉ. माइकल ओहेलन (ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन) का कहना है:
“अगर इजरायल ने ईरानी परमाणु कार्यक्रम पर हमला किया, तो यह एक सीमित सैन्य कार्रवाई नहीं होगी, बल्कि इसका जवाब ईरान और उसके समर्थकों द्वारा कई मोर्चों पर दिया जा सकता है।”
ईरान की स्थिति पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का मानना है कि तेहरान अपनी परमाणु नीति में बदलाव करने से पहले अमेरिका और इजरायल दोनों के रुख को देख रहा है।