नई दिल्ली: राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई की मांग को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से याचिका दायर करते हुए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष तर्क प्रस्तुत किए।
पीठ ने कपिल सिब्बल की दलीलों पर विचार करते हुए कहा कि याचिकाएं गंभीर संवैधानिक प्रश्न उठाती हैं और इन्हें तत्काल सूचीबद्ध करने की आवश्यकता है। मुख्य न्यायाधीश ने आश्वासन दिया कि वे दोपहर में उल्लेख पत्र (मेंशनिंग नोट) का अवलोकन कर सुनवाई की तिथि निर्धारित करेंगे।

CJI संजीव खन्ना ने कहा
“मैं दोपहर में इन उल्लेख पत्रों को देखूंगा और सुनवाई को लेकर निर्णय लूंगा। इस विषय पर पहले ही कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। जल्द सुनवाई की व्यवस्था पहले से मौजूद है, आपको इसे मौखिक रूप से उठाने की आवश्यकता नहीं थी।”
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बना वक्फ संशोधन विधेयक 2025
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने शनिवार को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दे दी, जिससे यह विधेयक अब कानून का रूप ले चुका है। यह विधेयक संसद के दोनों सदनों में तीव्र बहस के बीच पारित हुआ था।
कानून की वैधता पर उठे सवाल, सुप्रीम कोर्ट में छह याचिकाएं दाखिल
विधेयक के कानून बनने के बाद समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, जमीयत उलमा-ए-हिंद, और अन्य संगठनों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में छह याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। याचिकाओं में यह दावा किया गया है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव वर्जित) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में कहा:
“यह कानून मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने की एक खतरनाक साजिश है और यह संविधान पर सीधा हमला है। हम इस कानून की वैधता को सुप्रीम कोर्ट और देशभर के उच्च न्यायालयों में चुनौती दे रहे हैं।”

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क्या हैं वक्फ संशोधन कानून 2025 के प्रमुख प्रावधान?
सरकार के अनुसार, यह संशोधन वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन, पारदर्शिता, जवाबदेही और कानूनी निरीक्षण को सुनिश्चित करता है। इसमें गैर-मुस्लिम सदस्यों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने का भी प्रावधान है, जिससे विवाद पैदा हुआ है।
सरकार ने अपने बचाव में कहा:
“इस कानून का उद्देश्य धार्मिक स्वतंत्रता को बाधित करना नहीं, बल्कि वक्फ प्रबंधन में मौजूद चुनौतियों का समाधान करना है। इसमें मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत उचित हैं।”