नई दिल्ली: अमेरिका ने भारत पर 25 प्रतिशत का टैरिफ लगाकर यह सोचा कि भारत आर्थिक रूप से दबाव में आ जाएगा। लेकिन वैश्विक कूटनीति का बड़ा मोड़ तब आया, जब रूस ने बिना भारत का नाम लिए अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा कि अब फर्क नहीं पड़ता। यह स्पष्ट संदेश था कि भारत अकेला नहीं है।
दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ 25 प्रतिशत का आयात शुल्क लगाने की घोषणा की। उनका उद्देश्य था भारत पर दबाव बनाना और रूस के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी को कमजोर करना। लेकिन इसी दौरान, क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमीत्री पेस्कोव ने कहा कि रूस वर्षों से प्रतिबंध झेलता आ रहा है, और उसकी अर्थव्यवस्था अब ऐसे दबावों की आदी हो चुकी है। यह बयान अमेरिका की नीतियों पर एक तीखा प्रहार था।
इसके बाद रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जाकारोवा ने कहा कि अमेरिका और उसके सहयोगी बार-बार एक जैसे कदम उठा रहे हैं, जो अब बेमतलब और ऊबाऊ लगने लगे हैं। यह संदेश भले ही सीधे तौर पर भारत के समर्थन में नहीं था, लेकिन संकेत स्पष्ट था कि रूस भारत के साथ खड़ा है।
इस बीच भारत ने प्रतिक्रिया में कोई सार्वजनिक बयान या विरोध नहीं जताया। बल्कि पिछले तीन वर्षों में भारत ने वैकल्पिक आर्थिक ढांचे पर चुपचाप काम किया है। रुपया-रूबल लेन-देन के माध्यम से भारत ने डॉलर पर निर्भरता कम की है। साथ ही यूएई, सऊदी अरब, अफ्रीका और मध्य एशिया जैसे क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत किए हैं। इससे यह स्पष्ट है कि एक दरवाजा बंद होने पर भारत के पास अन्य विकल्प खुले हैं।
भारत ने रूस से सस्ते तेल खरीदकर उसे स्ट्रैटजिक पेट्रोलियम रिजर्व में स्टोर किया है। इससे युद्ध जैसे हालात में 60 दिनों तक ऊर्जा सुरक्षा बनी रह सकती है। इसके अलावा जापान, फ्रांस, रूस और यूएई जैसे देशों के साथ 14 टेक्नोलॉजी समझौते किए गए हैं।
वहीं, अमेरिकी कांग्रेस में रूस से व्यापार करने वाले देशों पर 500 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाने का प्रस्ताव लंबित है। यह बिल रिपब्लिकन लिंडसे ग्राहम और डेमोक्रेटिक रिचर्ड ब्लूमेंथल द्वारा पेश किया गया है, जिसे 100 में से 85 सीनेटरों का समर्थन प्राप्त है। इस पर सितंबर या अक्टूबर में मतदान होने की संभावना है। इसे सेकंडरी टैरिफ कहा जा रहा है, जिसका उद्देश्य सिर्फ मुख्य टैरिफ नहीं बल्कि अतिरिक्त दंडात्मक शुल्क लगाना है।
एशिया पैसेफिक फाउंडेशन के वरिष्ठ विश्लेषक माइकल कुगलमैन के अनुसार, यह पहली बार है जब ट्रंप ने भारत और रूस के बीच सैन्य व ऊर्जा व्यापार को लेकर भारत के खिलाफ इतना कड़ा कदम उठाया है। यह उस समय आया है जब दोनों देशों के रिश्ते करीब माने जा रहे थे।
इस घटनाक्रम ने दिखाया कि भारत अब दबाव में नहीं आता, बल्कि शांत रहकर रणनीतिक विकल्पों पर काम करता है। अमेरिका की एकतरफा नीति के जवाब में भारत की चुप रणनीति और रूस का अप्रत्यक्ष समर्थन वैश्विक मंच पर बड़ा संदेश बन गया है।