नई दिल्ली: 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक, आर्थिक और अब जल संसाधन के मोर्चे पर भी बड़ा कदम उठाया है। पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने के लिए भारत ने न केवल सिंधु जल संधि को स्थगित किया है, बल्कि चिनाब और झेलम नदियों पर नियंत्रण के उपाय तेज कर दिए हैं।
विश्वसनीय सरकारी सूत्रों ने बताया है कि भारत ने बगलिहार बांध (चिनाब नदी पर स्थित) से पानी के प्रवाह को कम कर दिया है। साथ ही, किशनगंगा बांध (झेलम की सहायक नीलम नदी पर स्थित) से पानी छोड़ने की प्रक्रिया पर भी पुनर्विचार किया जा रहा है। ये दोनों जलविद्युत परियोजनाएं भारत को यह सामरिक क्षमता देती हैं कि वह पाकिस्तान में बहने वाले जल प्रवाह को नियोजित ढंग से नियंत्रित कर सके।

भारत की कार्रवाई से पाकिस्तान में मचा हड़कंप
भारत की इस जल कूटनीति से पाकिस्तान में राजनीतिक और सार्वजनिक स्तर पर उथल-पुथल मच गई है। पाकिस्तान ने भारत की इन नीतियों को “युद्ध सरीखा कदम” बताया है। पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा, “अगर सिंधु का पानी रोका गया तो सिंधु में पानी नहीं, खून बहेगा।”
विशेषज्ञों के अनुसार, सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों पर भारत का नियंत्रण पाकिस्तान की खेती, उद्योग और पेयजल आपूर्ति के लिए गहरी चिंता का विषय है। पाकिस्तान की लगभग 65% आबादी सिंधु बेसिन पर निर्भर है, और भारत की जल कूटनीति उसके लिए एक भारी रणनीतिक झटका है।
भारत के बहुआयामी जवाब: केवल जल नहीं, राजनयिक और व्यापारिक मोर्चे पर भी प्रहार
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति अब बहुआयामी होती जा रही है। पहले भारत ने पाकिस्तान से व्यापारिक संबंधों में कटौती, भारतीय बंदरगाहों पर पाकिस्तानी जहाजों पर रोक और आयात पर प्रतिबंध जैसे सख्त निर्णय लिए। अब, जल संसाधनों को भी रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया था कि, “भारत आतंक के दोषियों को न्याय के कटघरे तक लाकर रहेगा — चाहे इसकी कितनी भी कीमत चुकानी पड़े।”
सीमा पर बढ़ा तनाव: लगातार हो रहा संघर्षविराम उल्लंघन
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव की झलक नियंत्रण रेखा (LoC) और अंतरराष्ट्रीय सीमा (IB) पर भी दिखाई दे रही है। पाकिस्तान की ओर से लगातार दस रातों से संघर्षविराम का उल्लंघन किया जा रहा है, जिसका भारतीय सेना मुंहतोड़ जवाब दे रही है।
सिंधु जल संधि की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
सिंधु जल संधि, 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित हुई थी। इस संधि के अंतर्गत भारत को सतलुज, ब्यास और रावी नदियों का उपयोग, और पाकिस्तान को झेलम, चिनाब और सिंधु नदियों का अधिकार दिया गया था। अब तक इसे दक्षिण एशिया में जल संबंधी विवादों के समाधान का प्रमुख उदाहरण माना जाता रहा है।