दोषियों में से एक के पिता गोविंद नाई (55) अक्खमभाई चतुरभाई रावल ने दावा किया कि उनका बेटा बेगुनाह है. दोषारोपण को “राजनीतिक प्रतिशोध” करार देते हुए उन्होंने बताया कि गोविंद हफ्ते भर पहले ही घर से चला गया था. बकौल अक्खमभाई, “मेरी इच्छा है और मैं प्रार्थना करता हूं कि वह (गोविंद) अयोध्या के मंदिर प्रतिष्ठान (राम मंदिर) में सेवा करे. कुछ न करने और इधर-उधर से बेहतर सेवा करना है. रिहा (जेल से) होने के बाद वह कुछ भी नहीं कर रहा था.”
उनके मुताबिक, जेल जाना कोई बड़ी बात नहीं है और ऐसा नहीं है कि वह अवैध रूप से जेल से बाहर आया था. वह कानूनी प्रक्रिया के तरह रिहा किया गया था और अब कानून ने उसे वापस अंदर जाने को कहा है तो वह वहां फिर जाएगा. वह 20 साल जेल में रहा है, इसलिए परिवार के लिए यह नई बात नहीं है. इस बीच, पुलिस की ओर से बताया गया कि गोविंद शनिवार (छह जनवरी, 2024) को घर से चला गया था। उसके घर वालों का कहना है कि वे हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग हैं, जो कि ‘अपराध कर ही नहीं सकते’ हैं.
ऐसे ही एक अन्य दोषी राधेश्याम शाह भी करीब 15 महीने से घर पर नहीं है. उसके पिता भगवानदास शाह ने दावा किया कि उन्हें बेटे के बारे में कुछ भी नहीं पता है. वह अपनी बीवी और बेटे को साथ लेकर घर से गया था. मामले में एक और दोषी प्रदीप मोढिया (57) भी फिलहाल गायब है। वहीं, ग्रामीणों की ओर से एक अंग्रेजी अखबार को इस बारे में बताया गया, “वे (दोषी) अब आपको नहीं मिलेंगे। सभी के घर फिलहाल लॉक हैं और वे घरों से भाग चुके हैं.”
दोषियों के घरों के बाहर एक-एक कॉन्सटेबल को पुलिसिया बंदोबस्त के तहत तैनात किया गया था, ताकि किसी भी सूरत में कोई अप्रिय घटना (दोषी पक्ष, परिवार वाले, रिश्तेदात और अन्य को) का सामना न करना पड़े. दरअसल, गुजरात में साल 2002 में दंगे हुए थे. उस दौरान बिलकिस बानो गैंगरेप का शिकार हुईं थीं. सामूहिक बलात्कार के इस मामले में 11 दोषियों की सजा माफ करने का राज्य सरकार ने फैसला दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है.