नई दिल्ली, 26 जुलाई 2024: उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों पर मालिकों के नाम की नेमप्लेट लगाने के अपने आदेश का जोरदार बचाव किया है। सरकार का तर्क है कि यह आदेश कांवड़ियों की भावनाओं को आहत होने से रोकने और शांति बनाए रखने के लिए लिया गया था।
कांवड़ियों के साथ पारदर्शिता और सुरक्षा
सरकार ने कोर्ट में कहा कि लाखों की संख्या में कांवड़िए गंगा जल लेकर लंबी पैदल यात्रा करते हैं। ऐसे में अगर किसी भी तरह की गलतफहमी हो जाती है तो स्थिति बिगड़ सकती है। इसलिए कांवड़ियों के साथ पारदर्शिता बनाए रखना जरूरी है। सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया कि यह निर्देश किसी विशेष समुदाय के खिलाफ नहीं था, बल्कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर आने वाली सभी दुकानों पर लागू किया गया था।
सांप्रदायिक तनाव रोकने का प्रयास
सरकार ने कहा कि बड़ी संख्या में कांवड़ियों के शामिल होने के कारण सांप्रदायिक तनाव की संभावना रहती है। इसलिए सार्वजनिक सुरक्षा और सुव्यवस्था बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है। इसीलिए कांवड़ यात्रा को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने के लिए पहले से ही उपाय किए गए थे।
पहले की घटनाओं से सबक
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पहले भी खाने-पीने की वस्तुओं को लेकर गलतफहमियों के चलते तनाव की स्थिति पैदा हो चुकी है। ऐसे में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नेमप्लेट लगाने का निर्देश दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा कि दुकान पर मांसाहारी या शाकाहारी लिखने के लिए कहा जा सकता है, लेकिन नेमप्लेट लगाने के लिए दुकानदारों को मजबूर नहीं किया जा सकता।
विवाद का कारण
इस फैसले के खिलाफ एक एनजीओ और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा कि यह फैसला दुकानदारों के मौलिक अधिकारों का हनन है।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला धर्म, राजनीति और कानून का जटिल मिश्रण है। इस मामले से यह सवाल उठता है कि धार्मिक आयोजनों के दौरान सार्वजनिक सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।
समाज में बहस
यह मामला समाज में व्यापक बहस का विषय बन गया है। कुछ लोग सरकार के इस फैसले का समर्थन करते हैं, तो कुछ लोग इसका विरोध करते हैं।
आगे का रास्ता
यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अंतिम फैसला क्या देता है। इस फैसले का देश के अन्य हिस्सों में भी धार्मिक आयोजनों पर असर पड़ सकता है।