नई दिल्ली: विश्व बैंक ने हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में भारत की गरीबी और समानता के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति को रेखांकित किया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने वर्ष 2011-12 से 2022-23 के बीच 17.1 करोड़ लोगों को अत्यंत गरीबी से बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की है। अत्यंत गरीबी की परिभाषा के अनुसार प्रतिदिन 2.15 डॉलर से कम पर जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या 16.2 प्रतिशत से घटकर 2.3 प्रतिशत रह गई है। यह आंकड़ा भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक मील का पत्थर माना जा रहा है।

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गरीबी में गिरावट
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत में अत्यंत गरीबी की दर 18.4 प्रतिशत से घटकर 2.8 प्रतिशत पर आ गई है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 10.7 प्रतिशत से घटकर 1.1 प्रतिशत रह गया। इससे ग्रामीण और शहरी गरीबी के बीच का अंतर भी 7.7 प्रतिशत से घटकर 1.7 प्रतिशत तक सिमट गया है, जो हर वर्ष औसतन 16 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है।
ग्रामीण क्षेत्र: 18.4% ➡️ 2.8%
शहरी क्षेत्र: 10.7% ➡️ 1.1%
निम्न-मध्यम आय वर्ग की श्रेणी में भी सुधार
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि भारत ने निम्न-मध्यम आय वर्ग (एलएमआईसी) की गरीबी रेखा — प्रतिदिन 3.65 डॉलर — के संदर्भ में भी उल्लेखनीय प्रगति की है। इस स्तर पर गरीबी दर 61.8 प्रतिशत से घटकर 28.1 प्रतिशत पर आ गई है, जो मध्यम वर्ग के विस्तार और आर्थिक विकास का संकेत है।
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल और मध्य प्रदेश का अहम योगदान
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021-22 में अत्यंत गरीबी में रहने वाले लोगों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश का कुल 65 प्रतिशत हिस्सा था। हालांकि, 2022-23 तक अत्यंत गरीबी में आई कमी में भी इन राज्यों ने दो-तिहाई योगदान दिया है।
फिर भी, 2022-23 में भारत के अत्यंत गरीब लोगों में इन राज्यों की हिस्सेदारी 54 प्रतिशत रही। इसके साथ ही, बहुआयामी गरीबी (स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर) में भी इन राज्यों का 51 प्रतिशत योगदान रहा है।

महिला रोजगार दर में उल्लेखनीय सुधार
विश्व बैंक की रिपोर्ट में महिलाओं के बीच रोजगार दर में वृद्धि की सराहना की गई है। शहरी बेरोजगारी दर वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में घटकर 6.6 प्रतिशत पर आ गई है, जो वर्ष 2017-18 के बाद सबसे न्यूनतम स्तर है।
हालांकि, युवा बेरोजगारी दर अब भी 13.3 प्रतिशत है और उच्च शिक्षा प्राप्त स्नातकों के बीच बेरोजगारी दर 29 प्रतिशत तक बनी हुई है, जो आने वाले समय में भारत के लिए एक चुनौती बनी रह सकती है।