नई दिल्ली: भारत एक बार फिर अंतरिक्ष की दुनिया में इतिहास रचने के करीब है। भारतीय वायुसेना के अनुभवी टेस्ट पायलट ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की ऐतिहासिक यात्रा पर जाने वाले हैं। वह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के गगनयान कार्यक्रम और ऐक्सिओम मिशन-4 (Ax-4) के अंतर्गत इस अभियान में भाग लेंगे। यह पहली बार होगा जब कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री आईएसएस तक पहुंचेगा।
शुभांशु शुक्ला भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री होंगे। इससे पहले 1984 में राकेश शर्मा ने सोवियत मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रा की थी। लेकिन शुभांशु की यह उड़ान भारत की स्वतंत्र भागीदारी के साथ हो रही है और इससे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाई मिलेगी।

14 दिन की इस यात्रा में शुभांशु आईएसएस पर अनेक वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। इन प्रयोगों में अंतरिक्ष में मूंग और मेथी जैसी फसलों की खेती, मानव शरीर पर अंतरिक्ष के प्रभाव का अध्ययन और भारतीय जीवनशैली से जुड़े प्रयोग प्रमुख हैं। वह अंतरिक्ष में योग का अभ्यास भी करेंगे और भारतीय संस्कृति की झलक के तौर पर विशेष वस्तुएं जैसे भारतीय मिठाइयां और एक छोटा खिलौना हंस (जॉय) भी साथ ले जाएंगे, जो शून्य गुरुत्वाकर्षण में तैरता नजर आएगा।
शुभांशु के साथ इस मिशन में अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री भी शामिल हैं। यह मिशन इन देशों के लिए भी चार दशक बाद पहला सरकारी अंतरिक्ष अभियान है। शुभांशु की उड़ान आज 25 जून 2025 को फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स के फॉल्कन-9 रॉकेट और ड्रैगन कैप्सूल के जरिए होगी। इस मिशन की लॉन्चिंग अब तक मौसम और तकनीकी कारणों से सात बार स्थगित हो चुकी है।
शुभांशु शुक्ला को रूस के यूरी गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में कठोर प्रशिक्षण दिया गया है। वह अब तक 3000 घंटे से अधिक की उड़ान कर चुके हैं और उन्होंने मिग-21, मिग-29, सुखोई-30, जैगुआर, हॉक समेत कई विमानों को उड़ाया है।

इस मिशन के दौरान शुभांशु भारत के विद्यार्थियों से सीधे संपर्क भी करेंगे और अंतरिक्ष से लाइव संवाद कर उन्हें विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) विषयों के प्रति प्रेरित करेंगे। उनकी यह यात्रा ना सिर्फ गगनयान मिशन के लिए आधार तैयार करेगी बल्कि 1.4 अरब भारतीयों के लिए एक नई प्रेरणा बनेगी।
भारत अब न सिर्फ अंतरिक्ष विज्ञान का अनुसरण कर रहा है, बल्कि उसमें अपनी विशिष्ट पहचान भी स्थापित कर रहा है। शुभांशु शुक्ला की यह यात्रा इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी।