महाराष्ट्र: मालेगांव बम धमाके मामले में 17 साल की लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद विशेष एनआईए अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, प्रसाद पुरोहित, अजय राहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी, सुधाकर द्विवेदी, समीर कुलकर्णी और राकेश धवड़े सहित सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मालेगांव में विस्फोट हुआ था, लेकिन अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि विस्फोटक आरोपी की बाइक में रखा गया था।
कोर्ट के अनुसार, विस्फोट में घायल हुए लोगों की संख्या 101 नहीं बल्कि 95 थी। साथ ही, कई मेडिकल प्रमाणपत्रों में हेराफेरी के संकेत भी सामने आए हैं। अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि मंजूरी की प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं। यूएपीए लागू करने के लिए दोनों आदेश तकनीकी रूप से दोषपूर्ण पाए गए।
कोर्ट ने बताया कि प्रसाद पुरोहित के घर पर विस्फोटक सामग्री के भंडारण या संयोजन के कोई प्रमाण नहीं मिले। घटनास्थल से न तो कोई स्केच बनाया गया और न ही फिंगरप्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य एकत्र किए गए। जो नमूने फोरेंसिक जांच के लिए भेजे गए, वे भी दूषित पाए गए जिससे रिपोर्ट निर्णायक नहीं मानी जा सकी। जिस बाइक का जिक्र हुआ, उसका चेसिस नंबर स्पष्ट नहीं था और यह सिद्ध नहीं किया जा सका कि विस्फोट से पहले वह प्रज्ञा ठाकुर के पास थी।
कोर्ट ने माना कि वह बाइक घटना स्थल पर जरूर थी, लेकिन इसमें आरडीएक्स रखा गया था, यह सिद्ध नहीं हो सका। साथ ही, यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया कि आरडीएक्स कश्मीर से लाया गया था या नहीं। घटनास्थल से गोली के खोल भी नहीं मिले और अधिकतर नमूने फोरेंसिक जांच की प्रक्रिया में कमजोर साबित हुए।
इस फैसले के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया भी तेज हो गई है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले पर नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि छह लोगों की मौत और करीब 100 लोगों के घायल होने के बाद भी आज तक कोई दोषी सिद्ध नहीं हो सका। उन्होंने फैसले को “निराशाजनक” बताया और सरकार पर जानबूझकर कमजोर जांच करने का आरोप लगाया। ओवैसी ने सवाल किया कि क्या केंद्र और महाराष्ट्र सरकार इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगी? उन्होंने कहा कि 17 साल बाद भी इंसाफ नहीं मिला और यह पूरे तंत्र पर सवाल उठाता है।
क्या हुआ था 29 सितंबर 2008 को:
मालेगांव के भिकू चौक क्षेत्र में रमजान के दौरान एक मस्जिद के पास खड़ी एलएमएल मोटरसाइकिल में हुए धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 100 लोग घायल हुए थे। धमाका इतना जोरदार था कि आसपास की दुकानों और इमारतों को भी नुकसान पहुंचा। यह मामला इसलिए भी विशेष माना गया क्योंकि इसमें पहली बार “हिंदू आतंकवाद” शब्द राजनीतिक विमर्श में उभरा था।