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‘सुसाइड सिटी’ बने कोटा में आत्महत्या करने वाले छात्रों की मौत का आंकड़ा दिन-प्रतिदिन चिंताजनक रूप से बढ़ता जा रहा है। मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की तैयारी के लिए राजस्थान के कोटा में रहने वाले दो और छात्रों ने रविवार को आत्महत्या कर ली, जिससे इस साल अब तक यहां मरने वाले छात्रों की संख्या 23 हो गई है। यह संख्या 2015 के बाद से अब तक की सबसे अधिक है, जब प्रशासन ने पहली बार आत्महत्या करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड इकट्ठा करना शुरू किया था। 23 में से 6 मौतें अकेले अगस्त महीने में हुईं, जिसके बाद प्रशासन ने रविवार को जल्दबाजी में एक आदेश जारी कर कोचिंग सेंटरों को दो महीने के लिए किसी भी प्रकार का टेस्ट लेने से रोकने का निर्देश दिया है।
रविवार को पहली मौत महाराष्ट्र के एक 16 वर्षीय छात्र अविष्कार संभाजी कासले की हुई, जिसने विज्ञान नगर इलाके में अपने कोचिंग सेंटर की छठी मंजिल से छलांग लगा दी। सर्कल अधिकारी (सीओ) धर्म वीर सिंह ने कहा, “छात्र ने आत्महत्या करने से कुछ देर पहले ही अपने कोचिंग सेंटर की तीसरी मंजिल पर एक टेस्ट दिया था।”
नाना-नानी के साथ रहता था छात्र
क्षेत्राधिकारी (सीओ) धर्मवीर सिंह के मुताबिक, महाराष्ट्र के लातूर जिले का रहने वाला और 12वीं कक्षा का छात्र अविष्कार संभाजी कासले तीन साल से कोटा में नीट की तैयारी कर रहा था और अपने नाना-नानी के साथ तलवंडी इलाके में एक किराये के कमरे में रह रहा था। कासले के माता-पिता महाराष्ट्र में सरकारी स्कूल के टीचर हैं।
वहीं, इस घटना के छह घंटे बाद, बिहार के एक 18 वर्षीय छात्र आदर्श राज को अपने कमरे में छत के पंखे से लटकता हुआ पाया गया। बिहार का किशोर अपनी बहन और चचेरे भाई के साथ कुनाड़ी इलाके में एक किराये के अपार्टमेंट में रह रहा था। कुनाड़ी थाना के एसएचओ गंगा सहाय शर्मा ने कहा, “बार-बार खटखटाने पर भी जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो दरवाजा तोड़ने के बाद रविवार शाम उसके भाई-बहनों ने उसे अपने ही कमरे में पंखे से लटका हुआ पाया। पीड़ित को अस्पताल ले जाया गया, जहां बाद में उसकी मौत हो गई।
दोनों मामलों में नहीं मिला सुसाइड नोट
दोनों छात्र नीट की तैयारी कर रहे थे, जिसका उपयोग स्नातक मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए एक बेंचमार्क के रूप में किया जाता है। इस मामले से परिचित एक अधिकारी ने कहा, “दोनों मामलों में कोई सुसाइड नोट नहीं मिला और प्रारंभिक रिपोर्ट में व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है।”
रविवार देर रात, जिलाधिकारी ओम प्रकाश बुनकर ने कहा कि उन्होंने “एक आदेश जारी किया है जिसमें कोचिंग सेंटरों को अगले दो महीनों तक कोई भी टेस्ट न लेने का निर्देश दिया गया है”।
डिप्रेशन वाले छात्रों की पहचान करना अधिक कठिन
बुनकर ने कहा, “माता-पिता और परिवार को अधिक सावधान रहना चाहिए। परिवार वालों के साथ रहने के बावजूद दोनों छात्रों के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं देखा गया। ऐसे में हमारे लिए उन छात्रों की पहचान करना अधिक कठिन है जो डिप्रेशन से पीड़ित हैं या आत्महत्या की प्रवृत्ति दिखा रहे हैं। हालांकि, जिला प्रशासन परिदृश्य में बदलाव के लिए कई प्रयास कर रहा है।”
निश्चित रूप से, जो लोग तनाव में हैं या मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं, वे जरूरी नहीं कि इसे जाहिर होने दें। कोटा में प्रशासन ने इस समस्या के समाधान के लिए जटिल तरीकों का पालन किया है, जिससे इस महीने की शुरुआत में छात्रावासों के लिए छत के पंखे लगाने के लिए स्प्रिंग-लोडेड रॉड का उपयोग करना अनिवार्य हो गया है, ताकि फांसी से होने वाली मौतों को रोका जा सके।
बता दें कि, पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, कोटा में 2022 में 15, 2019 में 18, 2018 में 20, 2017 में सात, 2016 में 17 और 2015 में 18 छात्रों की मौत हुई। 2020 और 2021 में कोई आत्महत्या नहीं हुई।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 18 अगस्त को कोटा जिले में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के बीच आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई थी और अधिकारियों को ऐसे मामलों पर नजर रखने के उपाय सुझाने के लिए एक समिति बनाने का निर्देश दिया था।
गहलोत ने कहा, “ऐसे (आत्महत्या) मामलों में और वृद्धि नहीं होनी चाहिए… सुधार का समय आ गया है। हम युवा छात्रों को आत्महत्या करते नहीं देख सकते… यहां तक कि एक भी बच्चे की मौत दुर्भाग्यपूर्ण है और माता-पिता के लिए बहुत बड़ी क्षति है।”
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स्त्रोत – Live Hindustan न्यूज़