Friday, November 22, 2024
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भीलवाड़ा: राजस्थान की तपती गर्मी में “माँ ने हाथ तो पिता ने पकड़े पैर”, 45 डिग्री की गर्मी में नंगे बच्चे को पत्थर पर घसीटा

भीलवाड़ा, राजस्थान: राजस्थान का भीलवाड़ा शहर इस समय भट्टी की तरह तप रहा है। प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में तापमान 45 डिग्री से लेकर 50 डिग्री तक पहुँच चुका है। इस भीषण गर्मी के चलते सरकार ने छोटे बच्चों और बुजुर्गों को दोपहर के समय घर से बाहर निकलने पर सख्त मनाही दी है। लेकिन इन सरकारी चेतावनियों के बावजूद भी भीलवाड़ा में एक डेढ़ साल के मासूम को पत्थरों के बीच घसीटे जाने की घटना सामने आई है।

सदियों पुरानी मान्यता का खतरनाक परिणाम

यह खतरनाक परंपरा भीलवाड़ा के एक विशेष समाज में सैकड़ों सालों से प्रचलित है। इस परंपरा के चलते कई मासूमों की जान भी जा चुकी है। राजस्थान के कई शहरों जैसे भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और बांद्रा में आदिवासी समुदाय के कई परिवार रहते हैं। इन परिवारों में आधुनिकता के बावजूद भी प्राचीन परंपराओं का पालन होता आ रहा है।

खतरनाक उपचार की प्राचीन विधि

इन समाजों में बच्चों के बीमार होने पर आधुनिक उपचार की जगह पारंपरिक और खतरनाक विधियों का प्रयोग किया जाता है। बच्चों को गर्म सरियों से डाम लगाने की प्रथा आज भी प्रचलित है, जिससे कई बार उनकी जान चली जाती है। इसी प्रकार की एक अन्य खतरनाक परंपरा भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में पाई जाती है।

बिंदिया भाटा: एक खतरनाक प्रथा का केंद्र

मांडल कस्बे के बिंदिया भाटा में एक 8 इंच का छेद वाले मोटे पत्थर पर विशेष धार्मिक मान्यता जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि इस छेद में से बच्चे को सात बार आर-पार करने से वह जीवनभर स्वस्थ रहता है और कुपोषित नहीं होता। शनिवार और रविवार को इस स्थान पर बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं।

पिता-पुत्र की दर्दनाक घटना

हाल ही में रविवार को एक दर्दनाक घटना सामने आई। एक पिता ने अपने डेढ़ साल के बच्चे को निर्वस्त्र कर 8 इंच के छेद में से सात बार आर-पार किया। इस प्रक्रिया में बच्चे को तपते हुए पत्थर से कई बार संपर्क में आना पड़ा। डॉक्टरों के अनुसार, इतनी भीषण गर्मी में छोटे बच्चों को इस तरह से पत्थरों के बीच घसीटना उनकी जान के लिए खतरनाक हो सकता है और इससे उनकी जान भी जा सकती है।

डॉक्टरों की चेतावनी

स्थानीय डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि इस तरह की परंपराएं बच्चों की जान के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं। भीषण गर्मी में इस तरह की प्रथाएं बच्चों की जान ले सकती हैं और उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकती हैं।

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