बिहार: विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राज्य की राजनीति का पूरा गणित बदल दिया। जिस मुकाबले को कड़ा माना जा रहा था, वह एकतरफा हो गया। NDA ने 202 सीटों पर कब्जा कर न केवल एंटी-इनकम्बेंसी की भविष्यवाणियों को गलत साबित किया, बल्कि भाजपा और जेडीयू ने अपने कम सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद ऐतिहासिक जीत दर्ज की। आरजेडी को सबसे ज्यादा वोट मिलने के बावजूद तेजस्वी यादव सत्ता की दौड़ में बुरी तरह पिछड़ गए। इस चुनाव में नीतीश कुमार की ‘दस हजारी गारंटी’, केंद्र की योजनाओं और जातीय समीकरण ने बड़ा रोल निभाया।
बिहार के चुनावी नतीजों ने शुक्रवार को सभी राजनीतिक अटकलों को पलट दिया। सुबह आए शुरुआती रुझानों में मुकाबला कड़ा दिख रहा था, लेकिन कुछ ही घंटों में नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA को भारी बढ़त मिलती गई। भाजपा के 89 और जेडीयू के 85 सीटों की सफलता ने इस गठबंधन को दो-तिहाई बहुमत से ऊपर पहुंचा दिया। NDA ने 46.52% वोट शेयर के साथ 202 सीटों पर जीत दर्ज कर ली और बिहार की राजनीति की दिशा बदल दी।
महागठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमटा—क्यों टूट गया वोट बैंक?
तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए यह चुनाव बेहद निराशाजनक रहा। 2020 में जहां गठबंधन को 110 सीटें मिली थीं, इस बार वह 35 सीटों पर ही रुक गया। राजद को 23% वोट शेयर मिला, जो सभी पार्टियों में सबसे अधिक था, लेकिन सीटों में यह बढ़त नहीं दिखी। यादव–मुस्लिम समर्थन के बावजूद ओबीसी और गैर-यादव वोटरों की बड़ी संख्या NDA की तरफ चली गई।

सीमांचल जैसे मुस्लिम बहुल इलाके, जहां महागठबंधन मजबूत माना जाता था, वहां भी NDA ने कई सीटें जीतकर सबको चौंका दिया। AIMIM को मिली 5 सीटें भी महागठबंधन के लिए नुकसान का बड़ा कारण बनीं, क्योंकि अल्पसंख्यक वोटों में सीधा बंटवारा हुआ।
NDA की जीत के पीछे ‘दस हजारी गारंटी’ और रणनीति का कमाल
नीतीश कुमार की ‘दस हजारी गारंटी’ योजना और महिलाओं को लक्षित सरकारी लाभ योजनाओं ने NDA को जबरदस्त फायदा पहुँचाया। भाजपा की ओर से धर्मेंद्र प्रधान की रणनीतिक चुनावी तैयारी और नितिन गडकरी द्वारा विकास कार्यों के आक्रामक प्रचार ने भी माहौल बनाए रखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत को ‘ऐतिहासिक’ बताते हुए कहा कि बिहार की जनता ने ‘जंगल राज वालों’ के MY फार्मूले को पूरी तरह नकार दिया है।
भाजपा और जेडीयू ने कम सीटों पर लड़कर बढ़ाया प्रभाव
एक खास बात यह रही कि भाजपा और जेडीयू दोनों ने पिछली बार की तुलना में कम सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सीटों का कन्वर्ज़न इतना मजबूत था कि NDA 202 सीटों के साथ सत्ता में लौटा। भाजपा 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी और जेडीयू ने 85 सीटों पर जीत हासिल की। यह चुनाव बताता है कि संगठित रणनीति और बूथ-स्तर पर मजबूत पकड़ बड़े अंतर ला सकती है।
बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव—NDA की रणनीति सफल, महागठबंधन बिखरा
बिहार के चुनावी नतीजों ने साफ दिखाया कि रणनीति, योजनाएं, महिलाकेंद्रित नीतियां और जातीय समायोजन विपक्ष के जातीय मॉडल पर भारी पड़ गया। नीतीश कुमार की शांत छवि और स्थिरता के संदेश को बड़ी संख्या में ग्रामीण और महिला मतदाताओं का समर्थन मिला। दूसरी ओर, महागठबंधन का परंपरागत वोट बैंक टूटता गया और गठबंधन अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर सका।
बिहार विधानसभा के बदले समीकरण — 243 में से 202 सीटें NDA के नाम
243 सीटों वाली विधानसभा में NDA ने एकतरफा बढ़त हासिल कर राज्य की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया है। मगध क्षेत्र, सीमांचल और बिहार के दक्षिणी इलाकों में NDA ने अप्रत्याशित बढ़त बनाई, जिसने अंतिम नतीजों को पूरी तरह अपने पक्ष में मोड़ दिया। कई सीटें जिन पर 2020 में राजद की मजबूत पकड़ थी, इस बार सीधे NDA के खाते में चली गईं।
बिहार चुनाव 2025 यह संदेश देते हैं कि सिर्फ वोट बैंक नहीं, बल्कि साफ रणनीति, विकास के मुद्दे और योजनाओं का वास्तविक लाभ चुनाव जीतने की कुंजी बन सकते हैं। NDA की इस विजय के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री पद संभालने की तैयारी में हैं, जबकि महागठबंधन के लिए आत्मचिंतन का समय है।





