नई दिल्ली: भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मिलकर धरती की निगरानी के लिए अब तक का सबसे पावरफुल सैटेलाइट निसार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) लॉन्च कर दिया है। इसे धरती का स्कैनर कहा जा रहा है, जो वातावरण, पर्यावरण, जंगल, समुद्र और ग्लेशियरों से लेकर खेतों तक के बदलावों पर बारीकी से नजर रखेगा। इस हाईटेक सैटेलाइट की लागत 12,000 करोड़ रुपये से ज्यादा बताई जा रही है। यह मिशन वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं को समझने और भविष्यवाणी करने में मदद करेगा।
धरती के एक इंच के बदलाव को भी पकड़ सकेगा निसार
निसार सैटेलाइट को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह धरती के बेहद सूक्ष्म बदलावों को भी रिकॉर्ड कर सकेगा। इसकी विशेषता यह है कि यह 12 दिनों के अंदर 1,173 बार पृथ्वी की परिक्रमा कर पूरी धरती को स्कैन करेगा। इस प्रक्रिया में यह वातावरण और पर्यावरण से जुड़ी महत्वपूर्ण सूचनाएं जुटाएगा। यह सैटेलाइट सिर्फ दिन में ही नहीं, रात के अंधेरे में भी काम करने में सक्षम है और हर तरह के मौसम में भी लगातार डेटा भेज सकेगा।
निसार मिशन का मकसद क्या है
इस अंतरिक्ष मिशन का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और उसके पर्यावरण को गहराई से समझना है। यह ग्लेशियरों में होने वाले बदलाव, जंगलों की स्थिति, खेतों की मिट्टी की दशा और समुद्र के स्तर में हो रहे उतार-चढ़ाव पर विस्तृत जानकारी देगा। इसके जरिए वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के कारणों और उनके प्रभावों पर रिसर्च कर सकेंगे। साथ ही यह सैटेलाइट प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, सुनामी या भूस्खलन की पूर्व चेतावनी देने के लिए उपयोगी डेटा प्रदान करेगा।
निसार को क्यों कहा जा रहा है सबसे पावरफुल सैटेलाइट
इस सैटेलाइट को कई ऐसी उन्नत तकनीकों से लैस किया गया है जो इसे अब तक का सबसे शक्तिशाली अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट बनाती हैं। इसमें पहली बार दो अलग-अलग सिंथेटिक अपर्चर रडार लगे हैं, जो अलग-अलग फ्रीक्वेंसी बैंड में काम करते हैं। यह विशेषता इसे अधिक सटीक और विस्तृत डेटा एकत्र करने में सक्षम बनाती है। इसमें 12 मीटर डायमीटर का गोल्ड प्लेटेड रडार एंटीना लगा है, जो धरती की सतह से टकराकर लौटने वाले माइक्रोवेव सिग्नल्स के जरिए सूचनाएं देगा।
इसके अलावा, इसमें सोलर ऐरे लगाया गया है जो ऊर्जा उत्पन्न करता है और यह ऊर्जा सैटेलाइट में लगे उपकरणों को चलाने में मदद करती है। निसार में लगे एल-बैंड SAR और एस-बैंड SAR दोनो तरह के रडार सिग्नल्स अलग-अलग गहराई तक धरती की सतह की जानकारी देने में सक्षम हैं। एल-बैंड अधिक गहराई तक जाकर पेड़ों, बर्फ और रेत के नीचे की सतह का डेटा देता है, वहीं एस-बैंड फसलों और जल प्रणालियों की स्थिति को दर्ज करता है।
वैज्ञानिकों को मिलेगी नई दिशा
निसार से प्राप्त आंकड़ों की मदद से वैज्ञानिक पर्यावरणीय बदलावों के पीछे के वैज्ञानिक कारणों को समझ पाएंगे। यह डेटा जलवायु वैज्ञानिकों, भूगर्भशास्त्रियों, कृषि वैज्ञानिकों और आपदा प्रबंधन विभागों के लिए उपयोगी होगा। इसके जरिये पर्यावरणीय नीतियों को सटीक बनाया जा सकेगा और प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में अधिक प्रभावी कदम उठाए जा सकेंगे।