Sunday, June 22, 2025
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नारायण सिंह: 56 साल बाद मिला शहीद सैनिक का शव, सैन्य सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार

गोपेश्वर: लगभग 56 वर्षों से लापता चमोली जिले के थराली विकासखंड के कोलपुड़ी निवासी शहीद नारायण सिंह बिष्ट का गुरुवार को उनके पैतृक घाट पर सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और ग्रामीण उपस्थित थे, जिन्होंने शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की और थराली-घाट मोटरमार्ग का नामकरण शहीद नारायण सिंह बिष्ट के नाम पर रखने की मांग की।

विमान दुर्घटना की पृष्ठभूमि

7 फरवरी 1968 को, चंडीगढ़ से उड़े वायुसेना के विमान में 102 क्रू मेंबर सवार थे। इस विमान ने चंडीगढ़ से लेह-लद्दाख के लिए उड़ान भरी थी, लेकिन हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे के ढाका ग्लेशियर में विमान क्रैश हो गया। इस दुर्घटना में कई जवान लापता हो गए थे, जिनमें चमोली जिले के कोलपुड़ी गांव के निवासी, 404 मीडियम बटालियन के सिपाही नारायण सिंह बिष्ट भी शामिल थे।

पिछले कुछ दिनों में हिमाचल प्रदेश के लाहुल और स्पीति जिले के बटाल क्षेत्र में स्थित चंद्रभागा पर्वत श्रृंखला की चोटी पर 56 साल बाद चार शव बरामद हुए थे, जिनमें शहीद नारायण सिंह बिष्ट का भी शव शामिल था। भारतीय सेना ने बर्फ में दबे इन शवों की पहचान की, जिसमें नारायण सिंह के शव को उनके आईकार्ड और जेब में रखे पते के आधार पर पहचाना गया।

शहीद का सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार

शहीद के पार्थिव शरीर को बुधवार को वायुसेना के हेलीकॉप्टर के माध्यम से गौचर हवाई पट्टी लाया गया, जहां से उसे रुद्रप्रयाग लाया गया। गुरुवार को सेना के वाहन से शहीद का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव कोलपुड़ी पहुंचाया गया। पार्थिव शरीर के गांव में पहुंचने पर पूरा वातावरण भावुक हो गया। ग्रामीणों और परिजनों ने उन्हें अश्रुपूर्ण विदाई दी।

शहीद नारायण सिंह बिष्ट के अंतिम संस्कार के दौरान उनके भतीजे सुरेंद्र सिंह और जयवीर सिंह ने मुखाग्नि दी। इस अवसर पर क्षेत्र के विधायक भूपाल राम टम्टा, पूर्व विधायक जीत राम, मुन्नी देवी शाह, उपजिलाधिकारी थराली अबरार अहमद, थाना अध्यक्ष पंकज कुमार, और कई अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे। सभी ने शहीद को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

विमान दुर्घटना में लापता सैनिकों का संघर्ष

1968 की इस दुर्घटना में नारायण सिंह बिष्ट और अन्य सैनिकों की खोजबीन कई वर्षों तक की गई, लेकिन बर्फीले पहाड़ों और प्रतिकूल मौसम के कारण जवानों का कोई पता नहीं चल पाया। उस समय नारायण सिंह की उम्र केवल 21-22 वर्ष थी, और उनकी पत्नी बसंती देवी उस समय मात्र 9 वर्ष की थीं। वर्ष 2011 में उनकी पत्नी का भी निधन हो चुका है, लेकिन उनके परिवार को अब शहीद की अंतिम विदाई का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

सेना की खोजबीन और परिजनों की प्रतिक्रिया

हाल ही में सियाचिन के बर्फीले पहाड़ों में भारतीय सेना द्वारा चलाए गए सर्च ऑपरेशन के दौरान 56 वर्षों बाद नारायण सिंह सहित चार लोगों के शव बरामद किए गए। इस खबर से शहीद के परिवार में शोक और आश्चर्य का माहौल उत्पन्न हो गया। शहीद के भतीजे जयवीर सिंह ने बताया कि जब सेना के अधिकारियों ने उन्हें उनके ताऊ का शव मिलने की जानकारी दी, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ।

56 वर्षों बाद अपने ताऊ के पार्थिव शरीर को देखकर परिवार भावुक हो गया और शहीद के अंतिम संस्कार का कार्य उनके परिजनों द्वारा संपन्न हुआ।

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